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    Pandharpur Wari 2025: पंढरपुर में 800 साल से चल रही है यात्रा... जानिए किसके इंतजार में खड़े हैं भगवान

    Updated: Thu, 03 Jul 2025 08:28 PM (IST)

    महाराष्ट्र में पंढरपुर वारी एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा उत्सव है जिसमें हर साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल होते हैं। 21 दिनों तक चलने वाली यह पदयात्रा 19 जून 2025 को शुरू हुई थी और 6 जुलाई को पंढरपुर पहुंचेगी। भगवान विट्ठल का मंदिर जो भगवान कृष्ण का ही एक रूप हैं।

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    Pandharpur Wari 2025: रुक्मिणी के साथ यहां भगवान श्रीकृष्ण यहां अपने भक्त से मिलने आए थे।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र का सबसे बड़ा मेला पंढरपुर में लग रहा है। यह सबसे महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा उत्सव है, जिसमें हर साल करीब 10 लाख से ज्यादा लोग शामिल होते हैं। इस पदयात्रा को पंढरपुर वारी कहा जाता है, जो करीब 21 दिनों तक चलती है। 

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    पालकी यात्रा 19 जून 2025 को शुरू हुई थी। आषाढ़ एकादशी के दिन 6 जुलाई 2025 को पंढरपुर में पालकी को ले जाया जाएगा और 10 जुलाई 2025 को यात्रा पूरी होगी। कहते हैं कि पिछले 800 सालों से यह यात्रा चल रही है।

    किसका बना है यहां मंदिर

    महाराष्ट्र में भगनाव विट्ठल का मंदिर बना हुआ है, जो भगवान कृष्ण का एक रूप माने जाते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान विट्ठल को ईंट पर खड़े हुए दिखाया गया है। इसकी कथा भगवान के अपने भक्त की प्रतीक्षा की कहानी बताती है। इसका संबंध पुंडलिक की निस्वार्थ भक्ति से जुड़ा हुआ है। 

    कहते हैं कि 6वीं सदी में माता-पिता के परम भक्त संत पुंडलिक हुए। वह श्रीकृष्ण के परम भक्त भी थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने माता रुकमणी के साथ पंडलिक को दर्शन दिए। उन्होंने अपने भक्त पुंडलिक से कहा कि हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।

    भक्त के लिए भगवान ने किया इंतजार 

    इस पर पुंडलिक ने भगवान विठ्ठल की तरफ देखकर कहा कि मेरे पिताजी सो रहे हैं। अभी मैं उनके पैर दबा रहा हूं। इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर इंतजार कीजिए। इसके बाद पुंडलिक फिर से अपने पिता के पैर दबाने में जुट गए। 

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    उधर, अपने भक्त की बात सुनकर भगवान कमर पर हाथ रखकर ईंट पर खड़े हो गए। इसके बाद वह श्री विट्ठल के विग्रह रूप में वहीं स्थापित हो गए। यह जगह पुंडलिकपुर बन गई, जिसका नाम बिगड़ते-बिगड़ते अब पंढरपुर हो गया है। 

    यात्रा के अंत में क्या होगा 

    पंढरपुर पहुंचकर चंद्रभागा नदी में स्नान करने के बाद यह पैदल यात्रा पूरी होगी। इसके बाद एकादशी के दिन राधारानी के साथ भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की मूर्तियों का जुलूस निकलेगा। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।