Vidur Niti: ऐसे व्यक्ति के पास कभी नहीं होती है धन की कमी, जानिए महात्मा विदुर से
Vidur Niti महात्मा विदुर को जीवन के विभिन्न विषयों का ज्ञान था। महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के बीच हुए संवाद को ही विदुर नीति के नाम से जाना जाता है। इन नीतियों के माध्यम से वह सभी बातें बताई गई हैं जिनसे व्यक्ति जीवन में सफल बन सकता है।

नई दिल्ली, Vidur Niti: महाभारत काल में महात्मा विदुर ने एक अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने हमेशा सत्य व धर्म का संरक्षण किया और निरंतर इसी के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। कहा जाता है कि महात्मा विदुर सदैव सत्य बोलते थे और सत्य का ही साथ देते थे। यही कारण है किसी भी गंभीर मामले में या उलझन में महाराज धृतराष्ट्र महात्मा विदुर से ही सलाह लिया करते थे। महाभारत में हुए राजा धृतराष्ट्र और महात्मा विदुर के बीच वार्तालाप को ही विदुर नीति कहा गया है। आज भी विदुर नीति लाखों युवाओं को सही मार्ग दिखाने का कार्य कर रही है। महात्मा विदुर ने सत्य के साथ-साथ व्यवहार, धन और कर्म को भी विदुर नीति में सम्मिलित किया है। आइए जानते हैं कि कैसे व्यक्ति के पास नहीं होती है कभी धन की कमी।
विदुर नीति की इन बातों का रखें विशेष ध्यान
अनिर्वेदः श्रियो मूलं लाभस्य च शुभस्य च ।
महान् भवत्यनिर्विण्णः सुखं चानन्त्यमश्नुते ।।
श्लोक में बताया गया है कि अपने काम में मग्न व्यक्ति को सदा सुख की प्राप्ति होती है। वह सदैव धन-संपत्ति से भरा पूरा रहता है। इसके साथ उसे यश, मान-सम्मान भी निरंतर मिलता रहता है। इसलिए महात्मा विदुर कहते हैं कि व्यक्ति को दूसरों के कार्य से अधिक अपने कर्मों की चिंता करनी चाहिए। इससे वह अपने लक्ष्य तक बिना किसी बाधा के बढ़ता रहेगा। वह अगर जरूरत से अधिक दूसरों के कार्यों में मन लगाएगा तो अपने लक्ष्य तक पहुंचने में उसे लंबा समय लग जाएगा।
सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेत् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ।।
इस श्लोक के माध्यम से महात्मा विदुर बता रहे हैं कि केवल सुख चाहने वाले से विद्या सदैव दूर रहती है और जो विद्या की प्राप्ति चाहता है वह सुख विमुख रहता है। इसलिए जिसे सुख चाहिए उसे विद्या अर्जित करना छोड़ना होगा और जिसे विद्या चाहिए उसे सुख का त्याग करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि विद्या अर्जित करने में परिश्रम और त्याग की जरूरत होती है। लेकिन जो व्यक्ति केवल सुख की कामना करता है उससे यह त्याग असंभव हो जाता है और अभी किए त्याग से ही बाद में ज्ञानी व्यक्ति धन और सम्मान से पूर्ण होता है।
डिसक्लेमर
इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।