Vidur Niti: जीवन में कैसा व्यवहार व्यक्ति को खाई में गिरने से बचाता है, यहां जानिए
Vidur Niti जीवन में व्यक्ति के व्यवहार का बहुत मूल्य है। वह अपने आसपास के लोगों के साथ और समाज में कैसा व्यवहार करता है यह बहुत महत्वपूर्ण है। महात्मा विदुर ने अपनी नीति में भी कुछ ऐसा ही बताया है। आइए यहां जानते हैं।

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Vidur Niti: व्यवहार को व्यक्ति का दर्पण माना जाता है। वह अपने सगे-संबंधी, मित्र या समाज से कैसा व्यवहार करता है, इसका बहुत महत्व है। महात्मा विदुर ने भी विदुर नीति के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति किस तरह के व्यवहार को अपनाकर जीवन में कभी परेशानियों से नहीं घिरता है। बता दें कि महाभारत काल में महात्मा की गणना श्रेष्ठ विद्वानों में की जाती थी। आज भी उनके द्वारा दी गई शिक्षा को अनेकों युवाओं द्वारा पढ़ा और सुना जाता है। विदुर नीति के इस भाग में आइए जानते हैं कि व्यक्ति को अपने जीवन में किस तरह का व्यवहार करना चाहिए।
Vidur Niti : इस तरह का व्यवहार करके व्यक्ति रहता है सुखी
यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्यस्तस्मिंस्तथा वर्तितव्यं स धर्मः।
मायाचारो मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः ।।
महात्मा विदुर ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि व्यक्ति को जैसा के साथ तैसा व्यवहार ही करना चाहिए। यही व्यक्ति की नीति होनी चाहिए। उसे अच्छे के बहुत अच्छा व्यवहार करना चाहिए और बुरे के साथ बुरा रुख ही अपनाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति स्वयं को और परिवार को कई परेशानियों से बचा सकता है। क्योंकि बुरा व्यक्ति न तो आपका हित चाहता है और न ही आपके परिवार के कल्याण के विषय में सोचता है। वह सदैव आपको नीचा दिखाने के प्रयास में जुटा रहता है। वहीं सज्जन व्यक्ति अपके साथ-साथ समस्त कुल के कल्याण की कामना करता है।
न विश्चसेदविश्चस्ते विश्चस्ते नातिविश्चसेत्।
विश्चासाद् भयमुत्पन्न मुलान्यपि निकृन्तति ।।
विदुर नीति के इस श्लोक में महात्मा जी ने बताया है कि जो व्यक्ति भरोसे के लायक नहीं है, उस पर कदापि भोरोसा नहीं करना चाहिए, यह अटल सत्य है। लेकिन सबसे भरोसेमंद व्यक्ति पर भी आंख मूंद का भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भरोसा टूटने से अनर्थ होना निश्चित है। इसलिए अपनी गुप्त बातें कभी भी सबके सामने नहीं बतानी चाहिए। साथ ही न ही अपनी भावनाओं में इतना बहना चाहिए, जिसके कारण सामने खड़ा व्यक्ति आपका गलत इस्तेमाल कर ले। यही सफल व्यक्ति की पहचान होती है।
न संरम्भेणारभते त्रिवर्गमाकारितः शंसति तत्त्वमेव ।
न मित्रार्थरोचयते विवादं नापुजितः कुप्यति चाप्यमूढः ।।
इस श्लोक में बताया गया है कि जो व्यक्ति को धर्म, अर्थ इत्यादि में कभी जल्दबाजी नहीं करता है। हमेशा सच बोलता है और मित्रों के कहने पर विवादों से दूर रहता है। साथ ही अपना अनादर होने पर भी दुखी नहीं रहता है, उसी को श्रेष्ठ व्यक्ति कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन सबमें धैर्य और बुद्धि दोनो की आवश्यकता होती है। बिना बुद्धि का इस्तेमाल करे धर्म का पालन करना और पैसे के पीछे भागना मूर्खों का काम है। साथ ही जो बुरे वक्त में भी निराश नहीं होता है और उसका डटकर सामना करता है, वही व्यक्ति सदैव सुखी रखता है।
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