Vaishakh Purnima 2025 Date: 11 या 12 मई कब है वैशाख पूर्णिमा? अभी नोट कर लीजिए तारीख और शुभ मुहूर्त
सनातन धर्म में वैशाख पूर्णिमा का खास महत्व है। इस दिन लोग सत्यनारायण व्रत रखते और विभिन्न प्रकार के पूजा अनुष्ठान करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है। इस साल वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima 2025) की डेट को लेकर थोड़ी कन्फ्यूजन है तो आइए इसकी सही डेट जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैशाख मास की पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं। कहा जाता है कि इस तिथि पर सच्चे भाव से पूजा-पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही जीवन में सुख-शांति आती है।
वहीं, इस साल वैशाख पूर्णिमा (Vaishakh Purnima 2025) की डेट को लेकर थोड़ी कन्फ्यूजन है, तो आइए इसकी सही डेट जानते हैं।
11 या 12 मई वैशाख पूर्णिमा कब है? (Vaishakh Purnima 2025 Kab Hai?)
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा की शुरुआत 11 मई को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 12 मई को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा। हिंदू धर्म में उदया तिथि का महत्व है। ऐसे में इस बार 12 मई को वैशाख पूर्णिमा मनाई जाएगी। वैशाख पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय शाम 05 बजकर 59 मिनट पर होगा। इस समय आप अर्घ्य दे सकते हैं।
वैशाख पूर्णिमा पूजा विधि (Vaishakh Purnima 2025 Puja Vidhi)
- सुबह उठें और पवित्र स्नान करें।
- गंगाजल में जल डालकर स्नान करें।
- इस दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और उनके मंत्रों का जाप करें।
- भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के सामने देसी घी का दीपक जलाएं, फिर उन्हें फल, फूल, खीर और अन्य चीजें अर्पित कर विधिवत पूजा करें।
- ब्राह्मणों को भोजन खिलाएं और उन्हें क्षमता अनुसार, दान दें।
- इस दिन किसी जरूरतमंद की मदद जरूर करें।
- इस मौके पर धर्म-कर्म से जुड़े काम करें।
- इस तिथि पर तामसिक चीजों से पूरी तरह परहेज करें।
पूर्णिमा पूजा मंत्र (Vaishakh Purnima 2025 Puja Mantra)
- ऊँ श्रीं ल्कीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्येहि सर्व सौभाग्यं देहि मे स्वाहा।।
- ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।।
- शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
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