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    Utpanna Ekadashi पर करें श्री हरि विष्णु और देवी एकादशी की आरती, सभी पापों का होगा नाश

    Updated: Sat, 15 Nov 2025 06:20 AM (IST)

    उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2025) का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है, जो इस साल 15 नवंबर यानी आज के दिन मनाई जा रही है। इस व्रत को रखने से साधकों को पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए यहां श्री हरि और देवी एकादशी की आरती करते हैं। 

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    Utpanna Ekadashi : उत्पन्ना एकादशी आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। उत्पन्ना एकादशी व्रत का हिंदुओं के बीच बहुत बड़ा महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2025) का व्रत आज यानी 15 नवंबर को रखा जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि जो साधक इस व्रत को रखते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही विष्णु जी का आशीर्वाद मिलता है।

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    वहीं, एकादशी व्रत पर भगवान विष्णु और एकादशी माता की आरती जरूर करनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है, तो आइए यहां उनकी आरती करते हैं, जो इस प्रकार हैं।

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    ॥भगवान विष्णु की आरती॥ (Lord Vishnu Aarti)

    ॐ जय जगदीश हरे आरती

    ॐ जय जगदीश हरे,

    स्वामी जय जगदीश हरे ।

    भक्त जनों के संकट,

    दास जनों के संकट,

    क्षण में दूर करे ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    जो ध्यावे फल पावे,

    दुःख बिनसे मन का,

    स्वामी दुःख बिनसे मन का ।

    सुख सम्पति घर आवे,

    सुख सम्पति घर आवे,

    कष्ट मिटे तन का ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    मात पिता तुम मेरे,

    शरण गहूं किसकी,

    स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।

    तुम बिन और न दूजा,

    तुम बिन और न दूजा,

    आस करूं मैं जिसकी ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    तुम पूरण परमात्मा,

    तुम अन्तर्यामी,

    स्वामी तुम अन्तर्यामी ।

    पारब्रह्म परमेश्वर,

    पारब्रह्म परमेश्वर,

    तुम सब के स्वामी ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    तुम करुणा के सागर,

    तुम पालनकर्ता,

    स्वामी तुम पालनकर्ता ।

    मैं मूरख फलकामी,

    मैं सेवक तुम स्वामी,

    कृपा करो भर्ता॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    तुम हो एक अगोचर,

    सबके प्राणपति,

    स्वामी सबके प्राणपति ।

    किस विधि मिलूं दयामय,

    किस विधि मिलूं दयामय,

    तुमको मैं कुमति ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,

    ठाकुर तुम मेरे,

    स्वामी रक्षक तुम मेरे ।

    अपने हाथ उठाओ,

    अपने शरण लगाओ,

    द्वार पड़ा तेरे ॥

    ॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

    विषय-विकार मिटाओ,

    पाप हरो देवा,

    स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।

    श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

    श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

    सन्तन की सेवा ॥

    ॐ जय जगदीश हरे,

    स्वामी जय जगदीश हरे ।

    भक्त जनों के संकट,

    दास जनों के संकट,

    क्षण में दूर करे ॥

    ॥एकादशी माता की आरती॥

    ॐ जय एकादशी, जय एकादशी,जय एकादशी माता।

    विष्णु पूजा व्रत को धारण कर,शक्ति मुक्ति पाता॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    तेरे नाम गिनाऊं देवी,भक्ति प्रदान करनी।

    गण गौरव की देनी माता,शास्त्रों में वरनी॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना,विश्वतारनी जन्मी।

    शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा,मुक्तिदाता बन आई॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    पौष के कृष्णपक्ष की,सफला नामक है।

    शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा,आनन्द अधिक रहै॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    नाम षटतिला माघ मास में,कृष्णपक्ष आवै।

    शुक्लपक्ष में जया, कहावै,विजय सदा पावै॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    विजया फागुन कृष्णपक्ष मेंशुक्ला आमलकी।

    पापमोचनी कृष्ण पक्ष में,चैत्र महाबलि की॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    चैत्र शुक्ल में नाम कामदा,धन देने वाली।

    नाम वरूथिनी कृष्णपक्ष में,वैसाख माह वाली॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    शुक्ल पक्ष में होयमोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।

    नाम निर्जला सब सुख करनी,शुक्लपक्ष रखी॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    योगिनी नाम आषाढ में जानों,कृष्णपक्ष करनी।

    देवशयनी नाम कहायो,शुक्लपक्ष धरनी॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    कामिका श्रावण मास में आवै,कृष्णपक्ष कहिए।

    श्रावण शुक्ला होयपवित्रा आनन्द से रहिए॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की,परिवर्तिनी शुक्ला।

    इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में,व्रत से भवसागर निकला॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में,आप हरनहारी।

    रमा मास कार्तिक में आवै,सुखदायक भारी॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    देवोत्थानी शुक्लपक्ष की,दुखनाशक मैया।

    पावन मास में करूंविनती पार करो नैया॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    परमा कृष्णपक्ष में होती,जन मंगल करनी।

    शुक्ल मास में होयपद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥

    ॐ जय एकादशी...॥

    जो कोई आरती एकादशी की,भक्ति सहित गावै।

    जन गुरदिता स्वर्ग का वासा,निश्चय वह पावै॥

    ॐ जय एकादशी...॥

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