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दो देवता जिन्‍होंने पांडवों को जीतवा दिया महाभारत का युद्ध

महाभारत का युद्ध सबसे भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में बहे रक्‍त से कुरुक्षेत्र की धरती भी लाल हो गई थी। महाभारत का युद्ध पांडवों ने इन दो महाशक्तियों की सहायता के बाद ही जीता था।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Fri, 30 Jun 2017 01:35 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jul 2017 11:22 AM (IST)
दो देवता जिन्‍होंने पांडवों को जीतवा दिया महाभारत का युद्ध
दो देवता जिन्‍होंने पांडवों को जीतवा दिया महाभारत का युद्ध

हनुमान जी

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हनुमानजी जी ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की मदद की थी। जिसके बाद ही पांडव युद्ध में विजय प्राप्‍त कर सके थे। हनुमानजी से पांडवों की मुलाकात वनवास के दौरान गंधमादन पर्वत पर हुई थी। भीम और हनुमान दोनों भाई हैं। क्योंकि दोनी ही पवन देव के पुत्र हैं। श्रीकृष्ण की युक्ति के अनुसार हनुमानजी से पांडवों ने जीत का आश्‍वासन ले लिया था। इसी के चलते वे युद्ध में अर्जुन के रथ के  उपर ध्वज में विराजमान हो गए थे। 

बाणों से क्‍यों नहीं बनाया सेतु

एक दिन अर्जुन अकेले वन में विहार करने गए। घूमते-घूमते वे रामेश्वरम चले गए। जहां उन्हें श्रीरामजी का बनाया हुआ सेतु देखा। यह देख कर अर्जुन ने कहा कि उन्हें सेतु बनाने के लिए वानरों की क्या जरूरत थी। जबकि  वे खुद ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। उनकी जगह मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता। यह सुन कर हनुमान ने कहा कि बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार झेल नहीं सकता। तब अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। हनुमानजी ने कहा मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा।  

क्‍यों लगी अर्जुन के रथ में आग

अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार कर दिया। जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया। हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु डगमगाने लगा। दूसरा पैर रखते ही सेतु चरमरा गया। यह देख कर अर्जुन खुद को खत्म करने के लिए अग्नि जलाने लगे तभी भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए। उन्‍होंने अर्जुन से कहा कि वह फिर से सेतु बनाए लेकिन इस बार वे श्रीराम का नाम लेके सेतु निर्माण करें। दूसरी बार सेतु के तैयार होने के बाद हनुमान फिर से उस पर चले लेकिन इस बार सेतु नहीं टुटा। इससे खुश हो कर हनुमान ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत उनकी रक्षा करेंगे। 

कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंतिम दिन कृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा उसके बाद कृष्ण रथ से उतरे। कृष्ण ने हनुमानजी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनकी रक्षा की। जैसे ही हनुमान अर्जुन के रथ से उतर कर गए वैसे ही रथ में आग लग गयी। यह देख कर अर्जुन हैरान रह गए। कृष्ण ने उन्हें बाताया कि कैसे हनुमान उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे।  

अर्जुन ने की थी शक्ति की उपासना

महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण के सुझाव पर युद्ध में विजय प्राप्ति के लिये अर्जुन ने शक्ति की साधना की थी। उनकी साधना के वरदान स्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने पांडवों की मदद की थी। उन्हीं शक्ति में से एक हैं माता काली जो दस महाविद्याओं में से प्रथम है। जिन्हें देवी दुर्गा की महामाया कहा गया है। युद्ध में विजय की कामना से अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उज्जैन में हरसिद्ध माता और नलखेड़ा में बगलामुखी माता का पूजन किया था। वहां उन्हें युद्ध में विजयी भव का वरदान मिला था।महाभारत युद्ध के एक रात पहले अर्जुन ने माता दुर्गा की आराधना की थी। माता ने प्रकट होकर उन्हें विजयी श्री का वरदान दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि हे अर्जुन तुम्हें विजय श्री के वरदान की जरूरत नहीं क्योंकि जहां धर्म होगा वहीं वासुदेव श्रीकृष्ण होंगे और जहां वे होंगे वहां विजयी ही होगी।    


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