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    Janmashtami 2025: कब और कैसे शुरू हुई भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा? पढ़ें कथा

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 08:00 PM (IST)

    इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 15 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस दिन पर व्रत करने का भी विशेष महत्व है। जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परम्परा लगाने की परंपरा चली आ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 56 भोग लगाने की परंपरा कैसे शुरू हुई। चलिए जानते हैं इस बारे में।

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    Janmashtami 2025 Chappan Bhog: कैसे शुरू हुई 56 भोग लगाने की परंपरा?

    दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। छप्पन भोग भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाने वाले 56 प्रकार (Chappan Bhog origin) के विविध प्रसादों का समूह है, जो भक्तों की पूर्ण श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह केवल व्यंजनों का संग्रह नहीं, बल्कि भक्त के मन और आत्मा की भक्ति का प्रतिबिंब है।

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    छप्पन भोग से यह दर्शाया जाता है कि भक्त अपने जीवन के हर पहलू को भगवान के चरणों में अर्पित करता है और उनसे आशीर्वाद की कामना करता है। इस भोग के अर्पण से माना जाता है कि भगवान कृष्ण विशेष प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का वरदान देते हैं।  

    छप्पन भोग का महत्व

    छप्पन भोग (Janmashtami 2025 Chappan Bhog) हमारी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक पाक कला की भी झलक देता है, जिसमें विविधता और समृद्धि की भावना समाहित होती है। इस प्रकार, छप्पन भोग न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा, सौभाग्य और शांति लेकर आने वाला एक दिव्य उपहार भी है। जन्माष्टमी जैसे पावन पर्व पर छप्पन भोग की परंपरा भक्तों की गहरी भक्ति और भगवान के प्रति अपार प्रेम को दर्शाती है।

    छप्पन भोग में शामिल प्रमुख व्यंजन

    छप्पन भोग यानी 56 प्रकार के प्रसाद जो भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं, उनमें विविध स्वाद और सामग्री होती हैं। इनमें से कुछ मुख्य व्यंजन इस प्रकार हैं-

    • मिठाइयां और मीठे पकवान: पंजीरी, शक्कर पारा, माखन-मिश्री, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बादाम और पिस्ता बर्फी, तिल की चिक्की।
    • तरल और पेय पदार्थ: पंचामृत, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ-दही, शिकंजी, गोघृत।
    • फलों और सूखे मेवे: आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, मेवा।
    • नमकीन और मसालेदार: मठरी, चटनी, मुरब्बा, पकौड़े, टिक्की, कचौरी, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान।
    • अन्य व्यंजन: पान, सुपारी, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूड़ी, दलिया, रोटी, देसी घी, शहद, सफेद मक्खन, ताजी मलाई, चना।

    छप्पन भोग से जुड़ी कथा

    पौराणिक कथा के मुताबिक, ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष आयोजन में जुटे थे। तब नन्हें कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि ये ब्रजवासी कैसा आयोजन करने जा रहे हैं? तब नंद बाबा ने कहा था कि, इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और उत्तम वर्षा करेंगे। इस पर बाल कृष्ण ने कहा, कि वर्षा करना तो इंद्र का काम है, तो आखिर इसमें पूजा की क्या जरूरत है?

    अगर पूजा करनी ही है, तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए जिससे लोगों को ढेरों फल-सब्जियां प्राप्त होती हैं और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था होती है। ऐसे में, कृष्ण की ये बातें ब्रजवासियों को खूब पसंद आई और वे इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। गोवर्धन पर्वत की पूजा से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है जिसमें देवताओं के राजा इंद्र बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने प्रकोप में ब्रज में भारी वर्षा करना शुरू कर दिया। इस वर्षा से ब्रजवासी भयभीत होकर नंद बाबा के पास गए।

    तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाएं हाथ की उंगली से पूरा गोवर्धन पर्वत (Govardhan Puja legend) उठा लिया और ब्रजवासियों को अपनी शरण में लेकर उन्हें बचाया। कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा, जिससे वर्षा बंद हो गई और ब्रजवासी सुरक्षित बाहर आ सके।

    इस दौरान, सभी ने देखा कि कृष्ण ने सात दिनों से कुछ नहीं खाया। तब सबने माता यशोदा से पूछा कि वे अपने लल्ला को कैसे भोजन कराती हैं। माता यशोदा ने बताया कि वे दिन में आठ बार कृष्ण को खाना खिलाती हैं। ब्रजवासियों ने अपने-अपने घरों से सात दिन के लिए हर दिन आठ-आठ व्यंजन बनाए और लाए, जो कृष्ण को बहुत पसंद थे। इसी परंपरा से छप्पन भोग की शुरुआत हुई, और यह माना जाता है कि 56 भोग अर्पित करने से भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

    लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।