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    Lord Dhanvantari: आरोग्य का वरदान लेकर धरती पर आए थे भगवान धन्वंतरि, यहां पढ़ें पौराणिक कथा

    Updated: Mon, 06 Oct 2025 02:34 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो इस साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर ब्रह्म योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान धन्वंतरि ( Lord Dhanvantari) की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आएगी। इस साल शनिवार 18 अक्टूबर को धनतेरस और सोमवार 20 अक्टूबर को दीवाली है।

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    Lord Dhanvantari: भगवान धन्वंतरि को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। साथ ही सोने और चांदी से निर्मित आभूषणों की खरीदारी की जाती है। भगवान धन्वंतरि (God of Ayurveda) की पूजा करने से व्यक्ति के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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    भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है। इसके लिए भगवान धन्वंतरि की पूजा (Dhanvantari birth story) करने से मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। लेकिन क्या आपको पता है कि कब और कैसे भगवान धन्वंतरि का अवतरण हुआ था? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

    भगवान धन्वंतरि अवतरण कथा (Dhanteras story)

    चिरकाल में एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के चलते स्वर्ग लक्ष्मी विहीन हो गया था। यह जान असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन समय में असुरों और देवताओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। देवता स्वर्ग से बेघर हो गए। उस समय देवता ब्रह्मा और विष्णु जी के पास गए और सहायता करने की याचना की।

    देवताओं से भगवान विष्णु बोले- समुद्र मंथन से अमृत कलश की प्राप्ति होगी। अमृत पान कर आप सभी अमर हो जाएंगे। इसके बाद असुर आपको परास्त करने में सफल नहीं हो पायेंगे। इसके अलावा, किसी अन्य माध्यम से आप असुरों को परास्त करने में सफल नहीं हो सकते हैं। इसके लिए आपको असुरों की भी मदद लेनी पड़ेगी। कालांतर में देवताओं ने असुरों की मदद से क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया। इस मंथन में मंदार पर्वत को मथनी (शीर्ष) के रूप में प्रयोग किया गया।

    वहीं, वासुकि नाग को मथनी पर लपेटकर समुद्र मंथन किया गया। इससे 14 रत्नों की प्राप्ति हुई। इनमें सबसे पहले विष प्राप्त हुआ, जिसे देवों के देव महादेव ने ग्रहण किया गया। इसके बाद क्रमशः 14 रत्न प्राप्त हुए। समुद्र मंथन के अंत में भगवान धन्वंतरि (Samudra Manthan Dhanvantari) अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि के कलश में अमृत था। अमृत पान कर देवता अमर हो गए। इसके बाद देवताओं ने असुरों को परास्त कर स्वर्ग पर दोबारा से आधिपत्य प्राप्त किया।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।