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    Suryaputra Karn: इस श्राप के चलते सूर्य पुत्र कर्ण को अर्जुन के हाथों मिली थी पराजय

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 05 May 2024 09:19 PM (IST)

    सूर्य पुत्र कर्ण अपने पालक पिता अधिरथ की भांति अन्य कार्य करने के बजाय युद्ध कला में महारत हासिल की। कहा जाता है कि सर्वप्रथम सूर्य पुत्र कर्ण को आचार्य द्रोण से युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त हुई। हालांकि ब्रह्मास्त्र अस्त्र की विद्या हासिल करने में कर्ण विफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने अनुचित तरीके से ब्रह्मास्त्र चलाने की विद्या हासिल करने की कोशिश की।

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    Suryaputra Karn: इस श्राप के चलते सूर्य पुत्र कर्ण को अर्जुन के हाथों मिली थी पराजय

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Suryaputra Karn: महाभारत काव्य की रचना वेदों के रचनाकार वेदव्यास जी द्वारा की गई है। इस महाकाव्य में सूर्य पुत्र कर्ण की वीरता और महानता का विस्तार से वर्णन किया गया है। सूर्य पुत्र कर्ण को दानवीर भी कहा जाता है। धर्म शास्त्र के जानकारों की मानें तो तत्कालीन समय में सूर्य पुत्र कर्ण दान देने में राजा बलि के समतुल्य थे। वीर कर्ण ने कभी किसी को दान देने से मना नहीं किया। अतः कर्ण की गिनती महान दानवीरों में होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि किस श्राप के चलते सूर्य पुत्र कर्ण को महाभारत युद्ध में अर्जुन के हाथों पराजय मिली थी? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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    कर्ण का जन्म

    महाकाव्य महाभारत के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा माता कुंती के दत्तक पिता कुंतीभोज के राजमहल पधारे थे। माता कुंती के पिता शूरसेन थे और माता मारिशा थीं। राजा भोज ने माता कुंती को गोद लिया था। उस समय राजा भोज ने ऋषि दुर्वासा को कुंती के विवाह हेतु वर पांडु के बारे में जानकारी दी। तत्कालीन समय में ऋषि दुर्वासा ने दिव्य दृष्टि से पांडु की भविष्यवाणी की। उस समय उन्हें ज्ञात हुआ कि पांडु से कुंती को कोई संतान प्राप्ति नहीं हो सकती है। तब ऋषि दुर्वासा ने माता कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया। इस वरदान के अंतर्गत माता कुंती को छह पुत्रों की प्राप्ति हुई। इनमें कर्ण का जन्म सूर्य देव की कृपा से हुआ। इसके लिए कर्ण को सूर्य पुत्र कहा जाता है। हालांकि, कर्ण का जन्म विवाह पूर्व हुआ था। इसके लिए माता कुंती ने समाज के मान-सम्मान हेतु कर्ण को लकड़ी के बक्से में डालकर गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। तत्कालीन समय में अधिरथ ने सूर्य पुत्र कर्ण का पालन-पोषण किया।

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    शिक्षा

    सूर्य पुत्र कर्ण अपने पालक पिता अधिरथ की भांति अन्य कार्य करने के बजाय युद्ध कला में महारत हासिल की। इसके लिए कर्ण को अधिरथ का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि सर्वप्रथम सूर्य पुत्र कर्ण को आचार्य द्रोण से युद्ध कला की शिक्षा प्राप्त हुई। हालांकि, ब्रह्मास्त्र अस्त्र की विद्या हासिल करने में कर्ण विफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य पुत्र कर्ण ने अनुचित तरीके से ब्रह्मास्त्र चलाने की विद्या हासिल करने की कोशिश की। यह जान आचार्य द्रोण ने शिक्षा देने से मना कर दिया। इसके बाद कर्ण ज्ञान हासिल करने हेतु परशुराम जी के पास पहुंचे।

    श्राप

    सनातन धर्म गुरुओं की मानें तो सूर्य पुत्र कर्ण को परशुराम भगवान ने पूर्ण शिक्षा दी। इसमें ब्रह्मास्त्र चलाने की भी विद्या शामिल थी। तत्कालीन समय में परशुराम भगवान केवल ब्राह्मणों को शिक्षा देते थे। एक बार भगवान परशुराम, सूर्य पुत्र कर्ण के जांघ पर सिर रखकर विश्राम कर रहे थे। उस समय एक बिच्छू कर्ण के दूसरे पैर पर डंक मारने लगा। सूर्य पुत्र कर्ण यह जान कि गुरु का ध्यान भंग न हो, बिच्छू के डंक को सहते रहे। इससे कर्ण के जंघा पर बड़ा जख्म बन गया। इस स्थान से रक्त प्रवाहित होने लगा। रक्त के प्रवाह से भगवान परशुराम की नींद खुल गई।

    उस समय कर्ण के जंघा पर जख्म देखकर भगवान परशुराम कर्ण की शक्ति को समझ गए। उन्होंने कहा- दर्द को इतना सहने की शक्ति केवल क्षत्रिय में हो सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि तुम क्षत्रिय हो। तुमने छल कर मुझसे शिक्षा प्राप्त की। अतः मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि जब तुम्हें ब्रह्मास्त्र की अत्यधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम चलाना भूल जाओगे। महाभारत युद्ध के 17वें दिन युद्ध के समय जब धरती में सूर्य पुत्र कर्ण का रथ धंस गया। उस समय भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने सूर्य पुत्र कर्ण पर ब्रह्मास्त्र चलाया। हालांकि, आवश्यकता के समय में कर्ण ब्रह्मास्त्र चलाना भूल गए। इस तरह अर्जुन के ब्रह्मास्त्र से कर्ण का वध हुआ।

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    डिस्क्लेमर-''इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'