Radha Ashtami 2022: शाश्वत प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं भगवती राधा, जिनसे श्रीकृष्ण होते हैं पूर्ण और परम
Radha Ashtami 2022 उत्कृष्ट त्याग एवं श्रद्धा एवं समर्पण ही आध्यात्मिक स्वावलंबन के मुख्य सूत्र हैं। राधा अष्टमी का यह पर्व संपूर्ण जनमानस की आत्मा में दिव्य अलौकिक सत्ता परमात्मा के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा से प्रेरित करता है।

आचार्य दीप चन्द भारद्वाज। Radha Ashtami 2022 भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधा जी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बरसाने में वृषभानु जी और माता कीर्ति जी के घर राधाजी ने जन्म लिया था। श्री राधा के जन्म दिवस एवं अवतरण दिवस को राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधा अष्टमी का यह आध्यात्मिक पर्व भी उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है। भारत के निंबार्क संप्रदाय, गौड़ीय वैष्णववाद, पुष्टिमार्ग, राधावल्लभ संप्रदाय, स्वामीनारायण आदि संप्रदायों में राधा को कृष्ण के साथ वंदनीय माना गया है। वैष्णव संप्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति माना जाता है, जो स्त्री रूप में प्रभु लीलाओं में प्रकट होती है। वैसे तो संपूर्ण भारत राधाष्टमी मनाता है, परंतु ब्रज वासियों, वृंदावन, मथुरा, बरसाना के लिए यह एक महापर्व के समान है।
योगीराज श्री कृष्ण का व्यक्तित्व श्री राधा रानी के बिना अधूरा है। कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाता है। अलौकिक प्रेम, भक्ति और करुणा की देवी श्री राधा जी त्याग, समर्पण की पराकाष्ठा का अद्भुत प्रमाण हैं। श्री राधा के दिव्य अलौकिक एवं निस्वार्थ प्रेम ने आज भी लाखों आध्यात्मिक ज्ञान पिपासुओं के हृदय में प्रेम और भक्ति की पावन ज्योति को आलोकित किया हुआ है। श्री राधा जी ने कृष्ण से कभी कोई अपेक्षा नहीं की और न ही कभी वह उनके महान कार्यों में बाधक बनीं। वह जानती थीं कि श्री कृष्ण के अवतार का उद्देश्य विराट और महान था, इसलिए उन्होंने कृष्ण को सहर्ष बिना किसी शर्त के मथुरा जाने की अनुमति प्रदान की।
योगेश्वर कृष्ण की प्रेरणा तथा आराध्य शक्ति हैं श्री राधा। जब कृष्ण ने राधा से पूछा कि भागवत में तुम्हारी क्या भूमिका होगी? तो राधा जी कहती हैं कि मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए, मैं तो आपकी छाया बनकर रहूंगी। कृष्ण के प्रत्येक सृजनात्मक कार्य की पृष्ठभूमि में श्री राधा जी की छाया है, चाहे वह कृष्ण की बांसुरी का राग हो या गोवर्धन को उठाने वाली तर्जनी हो या समस्त लोक कल्याणार्थ मथुरा में जाकर कंस का वध, इन सब उत्कृष्ट विराट कार्यों की प्रेरक शक्ति श्री राधा जी ही रहीं। मनीषियों ने राधा के दार्शनिक एवं आध्यात्मिक मर्म को स्पष्ट करते हुए कहा है कि राधा केवल भौतिक रूप में अस्तित्वमय ही नहीं, अपितु राधा को स्वयं श्री कृष्ण की चेतना के शुद्ध आनंद का प्रतिनिधित्व करने वाली शक्ति कहा गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा को मूल प्रकृति के रूप में वर्णित किया गया है, जो कृष्ण से अविभाज्य है, वह मूल बीज ही सभी भौतिक रूपों के विकास का उद्गम केंद्र है। उद्धव जी राधा की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि-
"वंदे राधा पदाम्भोजं ब्रह्मादि सुरविन्दतम्।
यत्कीर्ति: कीर्तनेनैव पुनाति भुवनत्रयम्"।
अर्थात अलौकिक दिव्य स्वरूप उस राधा के चरण कमलों कि मैं वंदना करता हूं, जो ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा वंदित हैं और जिनकी कीर्ति के कीर्तन से तीनों भवन पवित्र होते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्री कृष्ण की आत्मरूपा है, इसी कारण भक्तजन उन्हें राधारमण कहकर पुकारते हैं। कृष्ण के प्रति श्री राधा का समर्पण एवं अलौकिक प्रेम निस्वार्थ की भावना से प्रेरित है। श्री कृष्ण से ही राधा महाशक्ति कहलाती हैं। कृष्ण के बिना राधा या राधा के बिना कृष्ण की कल्पना संभव नहीं। राधा तत्व चिरंतन हैं। जिस प्रकार गंगा में गिरने वाली तमाम छोटी-बड़ी नदियां गंगा बन जाती हैं, उनका पार्थक्य समाप्त हो जाता है, अस्तित्व का द्वैत भाव मिट जाता है, गंगा बनी नदियां पूर्ण समर्पण के साथ वेग से दौड़ पड़ती हैं अपने अनंत सागर की ओर अर्थात अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेती हैं। ठीक इसी इसी प्रकार राधा तत्व भी आध्यात्मिकता से निरंतर प्रवाहमान ऐसी आनंद से परिपूर्ण नदी की धारा के समान है, जिसमें मिलने वाले ताल उसी का रूप तथा नाम हो जाते हैं।
राधा जी दिव्य और शाश्वत प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं, जो मानव मात्र को ईश्वरीय साधना के मार्ग की ओर अग्रसर करती हैं। राधा भगवान कृष्ण की सहचरी हैं। यदि कृष्ण देह हैं तो राधा आत्मा है। कृष्ण शब्द हैं तो राधा अर्थ है। कृष्ण गीत हैं तो राधा संगीत। कृष्ण वंशी हैं तो राधा उसका स्वर हैं। कृष्ण यदि पुष्प हैं तो राधा उसकी सुगंध है। वैष्णव मार्ग के चिंतकों का कहना है कि राधा नाम का स्मरण स्वयं ऊर्जा एवं आध्यात्मिक आनंद प्रदान करने वाला है। कृष्ण जी ने अपनी संपूर्ण शक्ति इसी नाम में भरी हुई है। श्री राधा के उपासक राधा अष्टमी के इस पावन अवसर पर राधा जी की आराधना करते हैं। इस दिन बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालु बड़ी आस्था के साथ करते हैं। संपूर्ण ब्रज, बरसाना, गोकुल, मथुरा के उपासकों का हृदय इस उत्सव में राधामय हो जाता है।
"राधा साध्यं साधनं यस्य राधा
मंत्रो राधा मंत्रदात्री च राधा
सर्वं राधा जीवनं यस्य राधा
राधा राधा वाचि किम् तस्य शेषम्"
इस मंत्र के कीर्तन के माध्यम से संपूर्ण वैष्णव एवं निंबार्क तथा स्वामीनारायण समुदाय के श्रद्धालु राधा के प्रति अपनी आस्था एवं समर्पण व्यक्त करते हैं। राधा वल्लभ संप्रदाय के मनीषियों का कहना है कि राधा अष्टमी का पर्व भगवान कृष्ण और राधा जी के ईश्वर स्वरूप के रूप में जाना जाता है। राधा व्यक्तिगत आत्मा का प्रतीक हैं और श्री कृष्ण सार्वभौमिक आत्मा के प्रतीक माने गए हैं। जिस प्रकार राधा का सर्वस्व सार्वभौमिक श्री कृष्ण जी हैं, उसी प्रकार मनुष्य का सर्वोपरि लक्ष्य ईश्वरीय सत्ता को आत्मसात करना अर्थात अपने मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होना है। यह लक्ष्य तभी प्राप्त होता है जब मनुष्य के अंतः करण में राधा जैसी श्रद्धा, भक्ति समर्पण, दिव्य प्रेम और उत्कंठा पैदा होती है। जिस प्रकार कृष्ण के विराट को समेटने के लिए राधा ने अपने हृदय को इतना विस्तार दिया कि सारा ब्रज उसका हृदय बन गया, इसी प्रकार यह पर्व मनुष्य को भी दिव्य सत्ता की प्राप्ति हेतु अपने अंतःकरण की संकीर्णता को त्याग कर उसे विस्तृत करने के लिए तथा विराट तत्वों की अनुभूति के लिए प्रेरित करता है। श्री राधा का जीवन आध्यात्मिक स्वाभिमान एवं स्वावलंबन का परिचायक है। उनका संपूर्ण जीवन श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा, दिव्य प्रेम, समर्पण एवं त्याग से परिपूर्ण है। आध्यात्मिक स्वावलंबन एवं स्वाभिमान की प्रतिपूर्ति हेतु मनुष्य के जीवन में भी त्याग, समर्पण और श्रद्धा का होना अनिवार्य है।
[आध्यात्मिक विषयों के अध्येता]
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