तो क्या दो थे सुदामा
द्वापर युग में जहां भगवान श्रीकृष्ण धन-समृद्धि से सुख भोग रहे थे, तो वहीं उनका एक मित्र भी था। जो बहुत गरीब था। श्रीकृष्ण के इस मित्र का नाम था 'सुदामा'। सुदामा से श्रीकृष्ण की मित्रता सांदीपनी ऋषि के आश्रम, उज्जैन में हुई थी। यह वह समय था जब कृष्ण
द्वापर युग में जहां भगवान श्रीकृष्ण धन-समृद्धि से सुख भोग रहे थे, तो वहीं उनका एक मित्र भी था। जो बहुत गरीब था। श्रीकृष्ण के इस मित्र का नाम था 'सुदामा'। सुदामा से श्रीकृष्ण की मित्रता सांदीपनी ऋषि के आश्रम, उज्जैन में हुई थी। यह वह समय था जब कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आए थे।
श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण और सुदामा का पूरी कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है। इसी पुराण के अनुसार, सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। सुदामा की पत्नी सुशीला अपने पति से कहतीं, 'आप अपने अमीर मित्र कृष्ण से कुछ धन ले आओ ताकि हम सुख पूर्वक रह सकें।' लेकिन जन्म से संतोषी स्वभाव के सुदामा किसी से कुछ नहीं मांगते थे। इस तरह वह दरिद्रता में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
तो क्या दो थे सुदामा
अंततः सुदामा, श्रीकृष्ण से द्वारिका में मिले और कृष्ण ने उनके परिवार को धन- धान्य से पूर्ण कर दिया था। श्रीमद्भागवत में उल्लेख में ही उल्लेखित है कि सुदामा नाम का एक और व्यक्ति था। वह मथुरा में रहता था।
तब कृष्ण तथा बलराम पहली बार मथुरा आए थे। वह वहां के सौंदर्य को देखकर काफी मोहित हो गए। उसी समय बलराम और कृष्ण सुदामा के घर गए। सुदामा से अनेक साज-सज्जा लेकर फूलों से उन्होंने साज-सज्जा की। और सुदामा को वर दिया, 'उसकी लक्ष्मी, बल, कीर्ति का हमेशा विकास होगा।'
वहीं सुदामा नाम का जिक्र सांदीपनी आश्रम के वर्णन में भी आता है, जहां बलराम-कृष्ण ने शिक्षा हासिल की थी। लेकिन श्रीकृष्ण के वास्तविक मित्र सांदीपनी आश्रम में मिले 'सुदामा' ही थे।
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