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    Skanda Sashti 2025: स्कंद षष्ठी पर ऐसे करें भगवान कार्तिकेय की आरती, मिलेगा पूजा का पूर्ण फल

    Updated: Mon, 30 Jun 2025 09:06 AM (IST)

    स्कंद षष्ठी का पर्व तमिल हिंदुओं के बीच बहुत विशेष माना जाता है। यह भगवान मुरुगन को समर्पित है। इस दिन भगवान स्कंद शिव जी और मां पार्वती की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि (Skanda Sashti 2025) पर सच्चे मन से पूजा और व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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    Skanda Sashti 2025: कार्तिकेय जी की आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। स्कंद षष्ठी का पर्व बेहद खास माना जाता है। खासकर तमिल हिंदुओं के बीच। इस दिन साधक भगवान स्कंद, शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते हैं। यह तिथि पूरी तरह से भगवान मुरुगन की पूजा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सच्चे भाव से पूजा-पाठ करने और व्रत रखने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, जो साधक इस कठिन उपवास का पालन कर रहे हैं,

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    उन्हें इस दिन (Skanda Sashti 2025) कार्तिकेय जी की आरती जरूर करनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है, जो इस प्रकार है।

    ।।कार्तिकेय जी की आरती।।

    जय जय आरती वेणु गोपाला

    वेणु गोपाला वेणु लोला

    पाप विदुरा नवनीत चोरा

    जय जय आरती वेंकटरमणा

    वेंकटरमणा संकटहरणा

    सीता राम राधे श्याम

    जय जय आरती गौरी मनोहर

    गौरी मनोहर भवानी शंकर

    सदाशिव उमा महेश्वर

    जय जय आरती राज राजेश्वरि

    राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि

    महा सरस्वती महा लक्ष्मी

    महा काली महा लक्ष्मी

    जय जय आरती आन्जनेय

    आन्जनेय हनुमन्ता

    जय जय आरति दत्तात्रेय

    दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार

    जय जय आरती सिद्धि विनायक

    सिद्धि विनायक श्री गणेश

    जय जय आरती सुब्रह्मण्य

    सुब्रह्मण्य कार्तिकेय।।

    ।।शिव जी की आरती।। (Lord Shiv Aarti)

    जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

    ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

    एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

    अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

    कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

    काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

    नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

    कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।