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    Sita Navami 2025: सुख-सौभाग्य को बढ़ाता है सीता नवमी का व्रत, जानिए कब है और कैसे करें पूजा

    Sita Navami 2025 माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी मंगलवार पुष्य-नक्षत्र के समय दोपहर में हुआ था।इसी वजह से 5 मई के दिन सीता नवमी मनाना उचित है क्योंकि 6 मई के दिन मध्याह्न व्यापिनी तिथि नहीं रहेगी। इसलिए सीता नवमी का व्रत और पूजन 5 मई के दिन करना ही उचित रहेगा। उनकी आराधना करने से सभी सुख मिलते हैं।

    By Shashank Shekhar Bajpai Edited By: Shashank Shekhar Bajpai Updated: Mon, 28 Apr 2025 05:11 PM (IST)
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    नवमी तिथि को जमीन में धंसे एक घड़े से हुआ था माता सीता का प्रकाट्य।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Sita Navami 2025: वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी प्रत्येक वर्ष मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सीता नवमी मां सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन खेत में हल चलाते हुए राजा जनक को वह एक घड़े के अंदर से मिली थीं।

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    इस साल सीता नवमी का पर्व 5 मई 2025 को मनाया जाएगा। कहते हैं इस दिन मां सीता की पूजा करने से सुख-सौभाग्य बढ़ता है। पंचांग के अनुसार, वैशाख के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 5 मई, सोमवार को सुबह 7:36 मिनट से शुरू होगी। 

    नवमी तिथि अगले दिन 6 मई को सुबह 8:39 मिनट तक रहेगी। वैसे उदया तिथि के अनुसार, तो नवमी तिथि 6 मई को होगी। मगर, माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी, मंगलवार, पुष्य-नक्षत्र के समय दोपहर में हुआ था।इसी वजह से 5 मई के दिन सीता नवमी मनाना उचित है क्योंकि 6 मई के दिन मध्याह्न व्यापिनी तिथि नहीं रहेगी।

    इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा। अभिजीत मुहूर्त के समय यानी सुबह 11:51 मिनट से दोपहर के 12:45 मिनट तक पूजा करना शुभ रहेगा। अमृत काल का समय दोपहर 12:20 से 12:45 मिनट तक रहेगा।

    पूजा विधि

    • सुबह स्नान आदि दैनिक क्रियाओं को करने के बाद साफ कपड़े पहनें।
    • पूजा स्थान को साफ करें। चौकी पर सीता-राम की प्रतिमा या मूर्ति रखें।
    • रोली, चंदन, अक्षत, फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
    • सीता नवमी व्रत कथा का पाठ करें। इसके बाद माता सीता और भगवान राम की आरती करें।
    • फिर व्रत रखें और पूरे दिन भगवान का ध्यान करें। शाम को पूजा करके लोगों को प्रसाद बांटे।

    सीता माता की आरती

    आरती श्रीजनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

    जगत-जननि जगकी विस्तारिणि, नित्य सत्य साकेत विहारिणि।

    परम् दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की।।

    आरती श्री जनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

    सतिशिरोमणि पति-हित-कारिणि, पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि।

    पति-हित-पति-वियोग-स्वीकारिणि, त्याग-धर्म-मूरति-धारी की।।

    आरती श्री जनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

    विमल-कीर्ति सब लोकन छाई, नाम लेत पावन मति आई।

    सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी, शरणागत-जन-भय-हारी की।।

    आरती श्री जनक-दुलारी की। सीताजी रघुबर-प्यारी की।।

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    माता सीता के प्रकाट्य की यह है कथा

    बाल्मिकी रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला में भयंकर सूखा पड़ा था। अन्न-जल को प्रजा में हाहाकार मच गया। इससे परेशान होकर राजा जनक ने एक ऋषि से इसका उपाय पूछा। उन्होंने राजा जनक को हवन करने के बाद जमीन पर हल चलाने के लिए कहा।

    ऋषि के निर्देश पर राजा जनक ने प्रजा के लिए यज्ञ करवाया और फिर धरती पर हल चलाने लगे। तभी उनका हल धरती पर एक जगह जाकर फंस गया। काफी प्रयास के बाद भी जब वह आगे नहीं बढ़ा, तो राजा जनक ने उस जगह की खुदाई कराई।

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    वहां एक घड़े से एक सुंदर कन्या मिली। उसे गोद में उठाने के बाद तेज बारिश शुरू हो गई। राजा जनक के हल का सीत जमीन में फंस गया था, इसलिए उन्होंने उस कन्या का नाम सीता रखा। जनक की बड़ी बेटी होने की वजह से उन्हें जानकी नाम से भी जाना जाता है।

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।