Sita Navami पर भगवान राम संग करें देवी जानकी की भव्य आरती, रिश्ते में आएगी मिठास
सीता नवमी बेहद पावन दिन माना जाता है। लोग इस दिन व्रत रखते हैं और सीता-राम की पूजा करते हैं। पंचांग के अनुसार इस साल सीता नवमी (Sita Navami 2025) 5 मई यानी आज के दिन मनाई जा रही है तो आइए देवी की भव्य आरती करते हैं जो इस प्रकार है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सीता नवमी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। यह दिन माता सीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन देवी जानकी का धरती पर अवतरण हुआ था। यह व्रत हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है। इस साल यह (Sita Navami 2025) 5 मई यानी आज के दिन मनाई जा रही है। वहीं, इस दिन कई दुर्लभ संयोग बन रहे हैं, तो आइए यहां भगवान राम संग मां जानकी की भव्य आरती करते हैं, जो इस प्रकार है।
।।मां सीता आरती।। (Sita Mata Aarti)
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
।।भगवान राम की आरती।। (Shri Ramchandra Ji Aarti)
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
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