Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत पर जरूर करें इस चमत्कारी कथा का पाठ, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति
प्रदोष व्रत बहुत मंगलकारी माना जाता है। इस दिन साधक भगवान शिव की उपासना करते हैं। इस दिन भोलेनाथ की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025) 25 अप्रैल यानी आज के दिन रखा जा रहा है। वहीं इस दिन प्रदोष व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए जो इस प्रकार है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में प्रदोष व्रत बेहद शुभ माना जाता है। यह दिन भगवान शिव की पूजा के लिए बहुत उत्तम माना जाता है। इस पवित्र दिन पर भक्त उपवास रखते हैं और भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं। शुक्रवार के दिन पड़ने की वजह से इसे शुक्र प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025) 25 अप्रैल यानी आज रखा जा रहा है, जो साधक इस व्रत कथा का पाठ करते हैं, उन्हें सुख और शांति का आशीर्वाद मिलता है, तो चलिए यहां पढ़ते हैं।
प्रदोष व्रत कथा ( Pradosh Vrat Katha)
एक बार अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी रहती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस वजह वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई।
कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।
ऋषि शांडिल्य ने बताया
तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी।
इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।
प्रदोष व्रत का प्रभाव
दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया।
इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी भी सुखी जीवन जीने लगी और भोलेनाथ की बड़ी उपासक बन गई।
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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
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