शिव को बिल्व पत्र अर्पण से होती है शिवत्व की प्राप्ति
देवाधिदेव महादेव शिव शंकर सबसे सरल देव हैं। शिव कलियुग के पास सृष्टि के कल्याण का जिम्मा है। मौजूदा समय चातुर्मास में सृष्टि के संचालन कर्ता भगवान विष्णु का शयन काल है। इसलिए इस समय तो भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं। पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव के पृथ्वी पर कुछ ऐसे द्रव्य हैं जो कि उन्हें अति प्रिय हैं। इसलिए ही उनके
देवाधिदेव महादेव शिव शंकर सबसे सरल देव हैं। शिव कलियुग के पास सृष्टि के कल्याण का जिम्मा है। मौजूदा समय चातुर्मास में सृष्टि के संचालन कर्ता भगवान विष्णु का शयन काल है। इसलिए इस समय तो भगवान शिव ही सृष्टि का संचालन करते हैं। पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव के पृथ्वी पर कुछ ऐसे द्रव्य हैं जो कि उन्हें अति प्रिय हैं। इसलिए ही उनके पूजन में विल्व पत्र अर्थात बेल पत्र का भी वर्णन मिलता है। पुराणों में कहा गया है कि त्रिदलम, त्रिगुणकारम, त्रिनेत्रम् त्रिदायुदम। त्रिजन्मपापं संहारम् एक विल्व पत्रम् शिव अर्पणम।। दर्शनम् विल्व वृक्षस्य स्पर्शम पापनाशनम् घोर पाप संहारम्।एक विल्व पत्रम् शिव अर्पणम्।। अर्थात त्रिनेत्र धारी भगवान शिव को प्रिय मात्र एक विल्व पत्र यानि बेल पत्र अर्पण तीन जन्मों के घोर से घोर पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही पृथ्वी पर मौजूद मात्र यही एक ऐसा वृक्ष है जिसके स्पर्श मात्र से ही पापों से छुटकारा मिल जाता है। श्मशान वासी शिव के पूजन को न किसी अमूल्य धातु की आवश्यकता है और न ही किसी अन्य वस्तु की।
शिव की सच्चे मन से की गई अल्प समय की प्रार्थना और एक लोटा जल और विल्व पत्र अर्पण से ही मनुष्य शिवत्व को प्राप्त हो जाता है। वैसे तो भगवान शिव का निवास स्थान केदारखण्ड हरिद्वार से ही प्रारंभ हो जाता है लेकिन, भगवान शिव की ससुराल दक्ष नगरी कनखल में उनकी पूजा अर्चना का विशेष महत्व शिव महापुराण में भी वर्णित है।
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