Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्यों आदिगुरु कहे जाते हैं शिव?

    By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Fri, 21 Jul 2023 03:27 PM (IST)

    हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की उपासना करने से साधक के सभी रोग दोष और पीड़ाएं दूर हो जाती है। बता दें कि भगवान शिव को आदिगुरु के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन शिव जी को आदिगुरु क्यों कहा जाता है आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

    Hero Image
    भगवान शिव को क्यों कहा जाता है आदिगुरु?

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Adiguru Shiva: सनातन धर्म में भगवान शिव को सृष्टि के संघारक के रूप में पूजा जाता है। शास्त्र एवं वेदों में यह वर्णित है कि भगवान शिव की उपासना करने से साधकों के सभी दुख और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। जिन साधकों पर भगवान शिव की कृपा बनी रहती है, उन्हें जीवन में नकारात्मक विचार नहीं आते हैं। साथ ही साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है। बता दें कि वेद एवं ग्रंथों में भगवान शिव को आदिगुरु कहा गया है। अब प्रश्न यह उठता है कि, भगवान शिव को 'गुरु' या 'आदिगुरु' क्यों कहा जाता है? इसके पीछे कई रोचक तथ्य दिए गए हैं। आज हम इसी विषय पर बात करेंगे और जानेंगे कि, क्यों कहा जाता है भगवान शिव को आदिगुरु?

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गुरु किन्हें कहा जाता है?

    संस्कृत भाषा में गुरु शब्द का अर्थ शिक्षक या ज्ञान दाता है। जो मनुष्य को अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं, उन्हें गुरु कहा जाता है। गुरु की देखरेख में एक शिष्य कई प्रकार के गुण सीखता है। साथ ही वह जीवन में उपयोग में लाई जाने वाली विभिन्न नीति, अनुशासन व नियमों को गुरु से ही प्राप्त करता है। वास्तव में गुरु की महिमा का कोई भी वर्णन नहीं कर सकता है। गुरु का स्थान भगवान से भी अधिक होता है। इसलिए एक श्लोक में कहा गया है कि गुरु ही ब्रह्म है जिन्होंने सृष्टि के रचना की, गुरु ही सृष्टि के पालक हैं, जैसे भगवान विष्णु और गुरु ही सृष्टि के संघारक हैं, जैसे भगवान शिव।

    भगवान शिव को क्यों कहा जाता है आदि गुरु?

    देवाधिदेव महादेव मनुष्य को उनकी कर्मों के बंधन से मुक्त करते हैं। बता दें कि प्रमुख वेदों में भगवान शिव के विभिन्न नामों का वर्णन किया गया है। अथर्ववेद में भगवान शिव को महादेव, शिव, शम्भू कहा गया है। यजुर्वेद में भोलेनाथ को रौद्र और कल्याणकारी कहा गया है। उपनिषद में शिव जी को गुरु और जगतगुरु के नाम से वर्णित किया गया है। वहीं ऋग्वेद में देवाधिदेव को रुद्र के नाम से संबोधित किया गया है। वाल्मिकी रामायण में भी भगवान शिव को परम गुरु की उपाधि दी गई है।

    गुरु का यदि हम शाब्दिक अर्थ देखते हैं तो शास्त्रों में यह बताया गया है कि 'गु' अक्षर का अर्थ अंधकार है और 'रु' का अर्थ निरोधक बताया गया है। ऐसे में जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और अज्ञानता के मार्ग को मिटाकर ज्ञान का मार्ग दिखाता है, उन्हें ही गुरु का जाता है।

    भगवान शिव हैं ज्ञान और योग के मुख्य स्रोत

    बता दें कि शास्त्रों में सप्त ऋषियों के विषय में विस्तार से बताया गया है। इसके साथ यह भी बताया गया है कि सप्त ऋषियों का जन्म ब्रह्मा जी के मस्तिष्क से हुआ था। इसलिए इन सप्त ऋषियों को ज्ञान-विज्ञान, धर्म, ज्योतिष और योग में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह सप्त ऋषि हैं- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक। खास बात यह है कि सप्त ऋषियों को शिक्षा प्रदान करने का दायित्व भगवान शिव के पास था। मान्यता है कि सर्वप्रथम जिन 7 लोगों को योग, कर्म और वैदिक ज्ञान प्राप्त हुआ था, उन्हें सप्त ऋषि के नाम से जाना जाने लगा। इसका अर्थ यह भी निकलता है कि भगवान शिव से ही योग, धर्म-कर्म, वैदिक ज्ञान का उद्गम हुआ था। यही कारण है कि हम भगवान शिव को आदिगुरु या आदियोगी के रूप में पूजते हैं।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।