Shiv Barat: इतनी विकराल थी शिव जी की बारात, कि देवी मैना भी हो गई थीं भयभीत
जब माता पार्वती और शिव जी का विवाह हुआ उस तिथि को हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। यह विवाह इसलिए भी अनोखा माना जाता है क्योंकि इसके बाद शिव जी वैराग्य जीवन को छोड़ वैवाहिक जीवन की ओर अग्रसर हुए थे जिससे सभी देवी-देवता बहुत प्रसन्न हुए।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। माता पार्वती की कड़ी तपस्या के बाद भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। जब शिव जी, पार्वती माता से विवाह करने के लिए अपनी बारात के साथ उनके द्वार पर पहुचे, तब उस बारात और शिव जी के स्वरूप को देखकर कई लोग भयभीत हो गए थे। ऐसे में चलिए जानते हैं श्री रामचरितमानस के बालकांड में वर्णित शिव जी की बारात का वर्णन।
इस तरह दूल्हा बने शिव जी
श्री रामचरितमानस के बालकांड में शिव जी के विवाह का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया कि शिव जी का विवाह वैदिक रीति से हुआ था। शिव जी का विवाह तय होने पर सभी देवी-देवता बड़े प्रसन्न हुए। जब महादेव दूल्हा बनकर तैयार हुए तो उनका स्वरूप सबसे निराला था। दूल्हे के रूप में शिव जी के गले में सांप और तन पर राख लिपटी हुई थी। शिव जी ने गले में नरमुंड माला धारण की हुई थी। एक रात में डमरू तो दूसरे हाथ में त्रिशूल शोभित था और शिवजी बल पर सवार थे।

कैसी थी बारात?
बारात में भूत-पिशाच, नंदी से लेकर यक्ष, गंधर्व, अप्सराएं, किन्नर आदि के साथ-साथ जानवर, सांप-बिच्छू भी शामिल थे। शिव जी के गणों में किसी का मुख नहीं था, तो किसी के कई मुख थे। इसी तरह बिना हाथ-पैर या कई हाथ पैर वाले गण शिव जी के बारात बने। बारात में शामिल सबी भूत-पिशाच, गण आद अपनी मौज-मस्ती में आगे बढ़ रहे थे।
जब बारात मुख्य द्वार तर पहुची तो इसे देखकर सभी हैरान थे। ऐसा कहा जाता है कि शिव जी बारात को देखकर वहां मौजूद महिलाएं भयभीत होकर वहां से भाग गईं। यहां तक की पार्वती जी की मां मैना भी इस रूप को देखकर हैरान रह गईं। लेकिन माता पार्वती, शिव जी के इस स्वरूप और बारात को देखकर बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं।
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नारद मुनि ने समझाई सारी बात
शिव जी के इस स्वरूप को देखकर देवी मैना व्याकुल हो गई थीं और उन्होंने इस विवाह से इनकार कर दिया था। इसका एक कारण यह भी था कि माता पार्वती और भगवान शिव में कोई समानता नहीं थी। जहां शिव जी का निवास स्थान खुला कैलाश पर्वत था। वहीं, पर्वत राज हिमालय और रानी मैना की बेटी पार्वती जी का पालन-पोषण महलों में हुआ था।
भगवान शिव सांसारिक मोह-माया से काफी दूर थे। इन सभी चीजों को देखते हुए हिमालय राज और देवी मैना वती इस विवाह के लिए राजी नहीं हुए। तब नारद जी ने शिवजी और पार्वती की पुनर्जन्म की कथा उन दोनों को बताई और उन्हें भगवान शिव की शक्तियों से अवगत कराया। जिसके बाद वह विवाह के लिए मान गए।
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