Shardiya Navratri 2025 Day 5: नवरात्र के पांचवें दिन पढ़ें यह मंगलकारी कथा, संतान से जुड़ी मुश्किलें होंगी दूर
शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन (Shardiya Navratri 2025 Day 5) मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है जो मातृत्व और शक्ति का प्रतीक हैं। मान्यता है कि उनकी उपासना से संतान सुख मिलता है। स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय की माता हैं जिन्होंने देवताओं को तारकासुर से मुक्ति दिलाई तो आइए तारकासुर वध नामक इस कथा का पाठ यहां करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shardiya Navratri 2025 Day 5: शारदीय नवरात्र का पांचवां दिन मां स्कंदमाता को समर्पित है, जो मातृत्व, करुणा और शक्ति का साक्षात प्रतीक हैं। स्कंदमाता मां दुर्गा का वह स्वरूप हैं, जिन्होंने देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय को जन्म दिया। स्कंदमाता की उपासना से संतान सुख की प्राप्ति और उनकी प्रगति होती है। इसके साथ ही पारिवारिक शांति बनी रहती है।
ऐसा भी माना जाता है कि जो दंपति सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं, उन्हें जल्द ही संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
मां स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। वह अपने गोद में भगवान स्कंद को बिठाए हुए हैं। उनके दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है, और वह सिंह पर विराजमान बैठती हैं। वह कमल के आसन पर भी विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। देवी का यह रूप भक्तों को ज्ञान, बुद्धि और वैराग्य देता है। साथ ही संतान की रक्षा होती है।
स्कंदमाता की कथा (Skandmata ki Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, जब तारकासुर नामक राक्षस के अत्याचार से तीनों लोक कांप उठा था, तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से मदद की गुहार लगाई। ब्रह्मा जी ने बताया कि तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। महादेव उस समय योग निद्रा में लीन थे। देवताओं की प्रार्थना पर, देवी पार्वती ने अपने दिव्य तेज से भगवान कार्तिकेय को जन्म दिया।
तारकासुर से युद्ध करने से पहले मां पार्वती ने स्वयं स्कंद भगवान को युद्ध की शिक्षा दी और उन्हें देवताओं का सेनापति बनाया। माता ने सिंह पर बिठाकर उन्हें युद्धभूमि में भेजा। स्कंद जी ने अपनी माता के मार्गदर्शन और शक्ति से तारकासुर का संहार किया और देवताओं को विजय दिलाई। ऐसा कहा जाता है कि स्कंदमाता की पूजा करने से संतान से जुड़ी मुश्किलें दूर होती हैं। इसके साथ ही सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
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