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    Shardiya Navratri 2025: क्या है नवरात्र में किए जाने वाले कल्पारंभ का महत्व, यहां पढ़ें विधि

    Updated: Fri, 26 Sep 2025 02:00 PM (IST)

    भारत के प्रत्येक प्रांत शारदीय नवरात्र (navratri 2025) को अपनी परंपरा और रीति-रिवाज के अनुसार मनाते हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश झारखंड बिहार और पश्चिम बंगाल में आश्विन मास में आने वाली नवरात्रि को विशेष रूप से कल्पारंभ से आरंभ किया जाता है। चलिए जानते हैं इस बारे में।

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    kalparambha in navratri क्या है कल्पारंभ का महत्व?

    दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। इस साल शारदीय नवरात्र की अवधि का शुभारंभ 22 सितंबर से हो चुका है। नवराभ में किए जाने वाले कल्पारंभ (kalparambha in navratri) का अर्थ है समय का शुभ प्रारंभ। इन क्षेत्रों में मां दुर्गा पूजा की शुरुआत षष्ठी तिथि से नवमी तक होती है, और इस दिन ही माता का स्वागत विधिपूर्वक किया जाता है। चलिए पढ़ते हैं इस दिन का महत्व और विधि।

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    कल्पारंभ क्या है? (kalparambha in navratri)

    कल्पारंभ नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर की जाने वाली एक अत्यंत पवित्र और विशेष पूजा है, जिसे अकाल बोधन भी कहा जाता है। ‘अकाल बोधन’ का अर्थ है मां दुर्गा का समय से पहले आह्वान करना। मान्यता है कि दक्षिणायन काल में देवी-देवता योगनिद्रा में रहते हैं, ऐसे समय में शरद ऋतु में मां दुर्गा का आवाहन ‘अकाल’ कहलाता है।

    इस दिन भक्तजन कलश स्थापना, पवित्र मंत्रोच्चार और वैदिक विधियों से देवी दुर्गा का पूजन करते हैं और उन्हें शक्ति स्वरूप में आमंत्रित करते हैं। माना जाता है कि इस पूजा से घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और साधक को मां की दिव्य कृपा मिलती है। कल्पारंभ नवरात्रि का शुभारंभ माना जाता है, जो भक्ति और साधना को सफल बनाता है।

    कल्पारंभ की विधि

    कल्पारंभ प्रातः काल में शुरू किया जाता है, जिसमें भक्त पूजा और व्रत का संकल्प लेते हैं। इस दिन एक कलश में शुद्ध जल भरा जाता है और इसे बेल के पेड़ के नीचे रखा जाता है, जिसे बिल्व निमंत्रण कहा जाता है। मान्यता है कि इस कलश में माता निवास करती हैं और इसे उनका निवास स्थान माना जाता है।

    पूजा स्थल पर इस कलश की स्थापना करके विधिपूर्वक माता का आह्वान किया जाता है। संध्याकाल में अकाल बोधन किया जाता है, यानी सूर्यास्त से लगभग ढाई घंटे पहले माता को असमय नींद से जगाया जाता है। इस समय विभिन्न मंत्रों का उच्चारण करके माता की पूजा और आरती की जाती है। अंत में उपस्थित भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है।

    उत्तर-पूर्वी भारत में यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जो षष्ठी से नवमी तक होता है। विशेषकर पश्चिम बंगाल में कल्पारंभ अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान धुनुची नृत्य, सिंदूर खेला, कोलाबोऊ पूजा जैसी परंपराएं बड़े उल्लास और श्रद्धा के साथ निभाई जाती हैं।

    कल्पारंभ को माता महाकाली की उपासना का सर्वोत्तम समय माना जाता है। इस समय सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से पूजा करने से माता पूरे वर्ष अपने भक्तों पर कृपा और आशीर्वाद बनाए रखती हैं।

    लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।