Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, इसके बिना अधूरी है पूजा
शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव मां पार्वती और शनि देव को समर्पित है। इस व्रत को करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार 28 दिसंबर यानी आज प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन का उपवास रखते हैं और प्रदोष कथा का पाठ भक्ति के साथ करते हैं उन्हें जन्मों जन्म के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत भगवान शिव की उपासना के लिए बेहद शुभ माना गया है। ये प्रति माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में आता है। शिव भक्तों के लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन शाम के समय पूजा करने का विशेष महत्व है। इसलिए इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस दिन शिव पूजन के साथ प्रदोष व्रत की कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना व्रत (Shani Pradosh Vrat Katha) अधूरा माना जाता है, तो चलिए यहां पढ़ते हैं।
शनि प्रदोष व्रत की कथा (Shani Pradosh Vrat Katha in Hindi)
एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास करती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था, जिस कारण वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन किया करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो नन्हे बालक दुखी अवस्था में मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।
तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।
दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के पुण्य प्रताप से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से मिल गया। इससे खुश होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।
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