Secrets of extramarital relations in Kundali: कुंडली में छिपे हैं विवाहेतर संबंधों के राज, समय रहते करें उपाय
Check extra marital affairs in a birth chart मन पर नियंत्रण अति आवश्यक है। यह भी सच है कि मन को चंद्रमा नियंत्रित करता है। चंद्रमा मन का मालिक होता है ऐसे में आप की मनमानी बहुत कुछ कुंडली पर भी निर्भर करती है।

नई दिल्ली, Secrets of extramarital relations in Kundali: चंद्रमा मन का मालिक होता है, और मन ही मनुष्य की सारी विचारधारा, कार्यकलाप एवं निर्णयों का मालिक होता है। मंगल और शुक्र विवाह एवं प्रेम के दैहिक कारणों को नियंत्रित करते हैं। जबकि बृहस्पति विवाह एवं प्रेम संबंधों को कानूनी सामाजिक एवं आर्थिक स्वीकृति और सहायता प्रदान करता है। शनि विवाह अथवा प्रेम संबंधों में बाहरी प्रभावों को नियंत्रण करता है।
कुंडली में छिपे हैं प्रेम और विवाह के संबंध
पंडित मुन्ना बाजपेई राम जी का कहना है, हालांकि यह सच है कि आप के ग्रह और नक्षत्र ही आपके प्रेम या विवाह के संबंधों को तय करते हैं। इसके बावजूद धार्मिक और सामाजिक स्वीकृति विवाहेतर संबंधों के लिए नहीं बनी होती। ऐसे में जरूरी है कि अपनी कुंडली में छुपे रहस्य को समझें और समय रहते सही उपाय करें। इससे विवाह संबंधों में स्थायित्व आएगा, और आप सुखी जीवन व्यतीत कर सकेंगे। यहां हम पांच ऐसी ग्रह स्थितियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो विवाहेतर संबंधों को जन्म दे सकती हैं। यदि आपकी कुंडली में यह स्थितियां हैं, तो किसी भी जानकार से सलाह लेकर उचित उपाय कर इन स्थितियों को नियंत्रण में करने का प्रयास करें।
ये 5 ग्रह स्थितियां ला सकती हैं वैवाहिक जीवन में भूचाल
1- यदि किसी व्यक्ति की कारकांश कुंडली में शुक्र प्रथम अथवा सातवें भाव में हो, उसका चंद्र, मंगल, बुध, या शनि के साथ युति योग बनता हो। इसके साथ मूल जन्म चक्र में शुक्र का चंद्र, मंगल, बुध या शनि के साथ दृष्टि संबंध बनता हो, तो ऐसे व्यक्ति का विवाह के बाहर प्रेम संबंध बनता है। हालांकि इस संबंध में भावुकता को विशेष स्थान नहीं मिलता।
2- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध या शुक्र में से कोई लग्नाधिपति हो और दोनों इकट्ठे अथवा अलग-अलग प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या एकादश भाव में स्थित हों, तो गुरु और शिष्य के बीच प्रेम संबंध स्थापित होने की पूरी संभावना रहती है। वहीं बुध अथवा शुक्र का बलवान चंद्र के साथ युति हो अथवा दृष्टि योग्य बनता हो, तो दोनों की, या दोनों में से किसी एक की शादी होने के बाद भी यह संबंध चलता रहेगा। हो सकता है बाद में वे विवाह भी कर लें।
इसी तरह शुक्र प्रथम, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा एकादश भाव में हो और मंगल अथवा शनि के साथ नवांश में गया हो। शुक्र का अपने नवांश के स्वामी के साथ जन्म कुंडली में योग और दृष्टि योग बनता हो। नवांश चक्र में युति हो अथवा केंद्र योग बनता हो। साथ ही शुक्र स्वयं के नवांश में हो, तो ऐसे व्यक्ति का विवाहित होते हुए भी प्रेम संबंध अवश्य बन जाएगा।
3- यदि किसी स्त्री की जन्म कुंडली में शुक्र अथवा मंगल मेष, वृषभ, कर्क, तुला या वृश्चिक राशि में हो और वही शुक्र अथवा मंगल नवांश चक्र में मेष, वृषभ, तुला, वृश्चिक, मकर या कुंभ राशि में गया हो। तब ऐसी स्त्री के बिना डरे प्रेम संबंध बनाने की संभावना होती है। उसके वैवाहिक जीवन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता है।
4- यदि कोई शुभ ग्रह दूसरे सातवें अथवा बारहवें स्थान में स्थित हो, और अन्य किसी शुभ ग्रह की उस पर तथा उस घर पर पूर्ण दृष्टि हो, तो ऐसे व्यक्ति का कहीं विवाहेतर प्रेम संबंध होने की बहुत अधिक संभावना होती है। यह भी हो सकता है, कि यह व्यक्ति धर्म पत्नी के होते हुए भी एक अन्य गुप्त विवाह कर ले।
5- यदि केतु सप्तम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो और उसे चंद्र, शुक्र, मंगल, अथवा शनि का सहयोग प्राप्त हो, तो ऐसा व्यक्ति एक पत्नी के रहते हुए केवल सुविधा के लिए दूसरा गोपनीय विवाह कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि इस गोपनीय विवाह में एक पक्ष विवाहित होगा और दूसरा पक्ष अविवाहित ही रहेगा।
डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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