Sawan 2025: त्रिशूल से लेकर त्रिपुंड तक, शिव जी को क्यों प्रिय है संख्या 3
शिव जी का स्वरूप अन्य देवताओं से बिल्कुल अलग है। त्रिशूल से लेकर त्रिनेत्र तक शिव जी पर चढ़ने वाला तीन पत्तों का बेल पत्र या फिर शिव जी के माथे पर तीन रेखाओं वाला त्रिपुंड ये सभी संख्या 3 को दर्शाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सभी चीजों का अर्थ बहुत ही गहरा है। चलिए जानते हैं इस बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शिव भक्तों को सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि यह माह खासतौर से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। कई साधक इस दौरान कई तरह के नियमों का पालन भी करते हैं और भगवान शिव के निमित्त सावन सोमवार का व्रत भी करते हैं। सावन के इस खास मौके पर जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी कुछ खास बातें।
क्या दर्शाते हैं त्रिशूल और बेलपत्र
त्रिशूल को भगवान शिव के अस्त्र के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि त्रिशूल त्रिलोक का प्रतीक है और इसमें आकाश, धरती और पाताल शामिल हैं। इसी के साथ अन्य कई पुराणों में त्रिशूल को तीन गुणों यानी तामसिक गुण, राजसिक गुण और सात्विक गुण को दर्शाने वाला बताया गया है।
वहीं शिवलिंग पर हमेशा तीन पत्तों वाला बेलपत्र ही चढ़ाया जाता है। बेलपत्र की यह तीन पत्तियां त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु महेश का स्वरुप मानी जाती हैं।
शिव के तीन नेत्र
शिव जी को त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है, क्योंकि उनके तीन नेत्र हैं। भगवान शिव के तीसरे नेत्र को ज्ञान, चित्त और आनंद का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव बहुत ज्यादा क्रोधित होते हैं, तो वह अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं।
शिव जी का यह नेत्र खुलने पर चारों और हाहाकार मच जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार शिव जी का तीसरा नेत्र के खुलने पर कामदेव का दहन हो गया था। महादेव के इस तीसरे नेत्र को ज्ञान और अंतर्दृष्टि के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
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(Picture Credit: Freepik)
मस्तक का त्रिपुंड
शिव जी के मस्तक त्रिपुंड लगा होता है, जो तीन क्षैतिज रेखाओं से बनता है। यह तीन लोकों यानी भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक के साथ-साथ आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भगवान शिव को संख्या तीन काफी प्रिय है।
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