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    Sanskrit Shlokas: आपका मार्गदर्शन करेंगे संस्कृत के ये श्लोक, जीवन में उतारें इनका अर्थ

    Updated: Wed, 07 May 2025 05:49 PM (IST)

    किसी काम की सफलता इस बात पर निर्भत करती है कि हम उसके लिए कितनी मेहनत कर रह हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas for Success) बताने जा रहे हैं जो आपको मेहनत करन के लिए प्रेरित करते हैं। चलिए जानते हैं व श्लोक और उनके अर्थ।

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    Sanskrit Shlokas for success (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है। यह भाषा प्राचीन होने के साथ-साथ वैज्ञानिक भी है। संस्कृत ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक मौजूद हैं, जो व्यक्ति को प्रेरणा देने का काम करते हैं। ऐसे में अगर आप इन श्लोकों में निहित अर्थ को समझकर इसे जीवन में उतारते हैं, तो इससे आपको निश्चित रूप से सफलता प्राप्ति में काफी मदद मिल सकती है। 

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    संस्कृत के श्लोक

    1. “उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।

    न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”

    अर्थ - इस श्लोक में कहा गया है कि सिर्फ इच्छा करने से किसी व्यक्ति के काम पूरे नहीं हो सकते, बल्कि इच्छापूर्ति के लिए व्यक्ति को प्रयास भी करना होगा। उदाहरण के तौर पर जैसे एक सोए हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं चलकर नहीं जाता, इसके लिए शेर को खुद परिश्रम करना पड़ता है।

    2. “योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।

    सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

    अर्थ – इस श्लोकमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! (अर्जुन) तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर केवल कर्म कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है। अर्थात अपने कर्मों को करते समय, आसक्ति को त्यागकर, सफलता और असफलता को समान समझकर व्यक्ति को अपना कर्म करते रहना चाहिए। 

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    3. “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।

    क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”

    अर्थ - इस श्लोक में मानव को प्रेरित करने के लिए कहा गया है कि उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। रास्ते कठिन और अत्यन्त दुर्गम हो सकते हैं, लेकिन कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता हासिल की जा सकती है।

    4. न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।

    व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

    अर्थ - इस श्लोक में विद्या के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि विद्या एक ऐसा धन है, जिसे न तो चुराया जा सकता, न छीना जा सकता है, जिसका भाइयों के बीच बंटवारा नहीं किया जा सकता, जिसे संभलना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है, साथ ही जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है। विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।