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    Sankashti Chaturthi 2024: इस दिन मनाई जाएगी भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ऐसे करें भगवान गणेश जी की पूजा

    Updated: Wed, 27 Mar 2024 10:53 AM (IST)

    हर महीने में चतुर्थी व्रत किया जाता है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस बार यह व्रत 28 मार्च को है। मान्यता है कि चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की उपासना करने से और रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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    Sankashti Chaturthi 2024: इस दिन मनाई जाएगी भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी, ऐसे करें भगवान गणेश जी की पूजा

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2024 Date: सनातन धर्म में चतुर्थी तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस अवसर पर भगवान शिव के पुत्र गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना और व्रत करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से इंसान के जीवन में आ रहे सभी तरह के दुख-दर्द दूर होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी की डेट और शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

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    भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Bhalchandra Sankashti Chaturthi 2024 Date and Shubh Muhurat)

    पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 28 मार्च 2024 को शाम 06 बजकर 56 मिनट से होगा और इसका समापन 29 मार्च 2024 को रात 08 बजकर 20 मिनट पर होगा। ऐसे में भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 28 मार्च 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। वहीं शाम को 05 बजकर 04 मिनट से शाम 06 बजकर 37 मिनट तक भगवान गणेश जी की पूजा कर सकते हैं।  

    भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Bhalchandra Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)

    भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्मा मुहृत में उठें और दिन की शुरुआत भगवान गणेश जी के ध्यान से करें। अब स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें और एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर गणेश जी की मूर्ति विराजमान करें। अब गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें और देशी घी का दीपक जलाकर गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना और आरती करें। साथ ही गणेश चालीसा और मंत्रों का जाप करें। अब भोग के रूप में गणेश जी को प्रिय मोदक या तिल का लड्डूओं का भोग लगाएं। संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत पूरा करें।

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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