Hanuman Tandav Stotra: मंगलवार के दिन करें हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात
Hanuman Tandav Stotra विवाहित और अविवाहित महिलाएं मां गौरी के निमित्त मंगला गौरी व्रत रख श्रद्धा भाव से देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा-उपासना करती हैं। इस व्रत को करने से मां पार्वती प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाओं को सुख सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Hanuman Tandav Stotra: आज सावन महीने का आखिरी मंगलवार है। इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं मां गौरी के निमित्त मंगला गौरी व्रत रख श्रद्धा भाव से देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा-उपासना करती हैं। इस व्रत को करने से मां पार्वती प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा से साधक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाओं को सुख, सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवाहित लड़कियों की शीघ्र शादी के योग बनने लगते हैं। साथ ही मंगल दोष का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। मंगलवार के दिन भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार हनुमान जी की भी पूजा उपासना की जाती है। धार्मिक मत है कि मंगलवार के दिन हनुमान जी की साधना करने से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी जीवन में सुख, समृद्धि और शांति पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय हनुमत तांडव स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। इस पाठ को करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है। आइए, हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ करें-
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं समस्तभक्तरक्षकम् ।
सुकण्ठकार्यसाधक विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं नमामि सिद्धकामिनम् ॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ
आप शं तदा स रामदूत आश्रयः ॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ स मे शिवं करोत्वरम् ॥
सुशब्दशास्त्रपारगं विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं समस्तनीतिमार्गगम् ।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत् स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥
प्रचण्डवेगधारिणं नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं नमामि यातुधतकम् ॥
नमामि पुष्पमौलिनं सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं किरीटकुण्डलान्वितम् ।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम् ।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न
शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
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