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Ganga Dussehra 2024: मां गंगा की पूजा करते समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात

यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद विधि-विधान से भगवान शिव संग मां गंगा की पूजा करते हैं। धार्मिक मत कि गंगा स्नान करने से व्यक्ति द्वारा अनजाने में किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarMon, 10 Jun 2024 04:50 PM (IST)
Ganga Dussehra 2024: मां गंगा की पूजा करते समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, पितृ दोष से मिलेगी निजात
Ganga Dussehra 2024: मां गंगा की पूजा करते समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ganga Dussehra 2024: सनातन पंचांग के अनुसार, 16 जून को गंगा दशहरा है। यह पर्व हर वर्ष ज्येष्ठ माह की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा की पूजा की जाती है। साथ ही पूजा, जप-तप और दान-पुण्य भी किया जाता है। गंगा दशहरा पर पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिरकाल में राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं। इसके लिए गंगा दशहरा पर पितरों का तर्पण भी किया जाता है। मां गंगा को पापहरणी भी कहा जाता है। सामान्य दिनों में भी गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही मां गंगा की कृपा भी व्यक्ति पर बरसती है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा दशहरा पर स्नान-ध्यान करते हैं। इसके बाद विधि-विधान से मां गंगा की पूजा करते हैं। अगर आप भी अपने पितरों को मोक्ष दिलाना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा पर पितरों का तर्पण अवश्य करें। साथ ही मां गंगा की विधिपूर्वक पूजा करें। इस समय गंगा स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

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गंगा दशहरा स्तोत्र

ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः।

नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।।

नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः।

सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।।

सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।

स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।

संसार-विष-नाशिन्यै, जीवानायै नमोऽस्तु ते।

ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै, प्राणश्यै ते नमो नमः।।

शन्ति-सन्तान-कारिण्यै, नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये।

सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै, नमः पापारि-मूर्त्तये।।

भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै, भद्रदायै नमो नमः।

भोगोपभोग-दायिन्यै, भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते।।

मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु, स्वर्गदायै नमो नमः।

नमस्त्रैलोक्य-भूषायै, त्रि-पथायै नमो नमः।।

नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै, क्षमा-वत्यै नमो नमः।

त्रि-हुताशन-संस्थायै, तेजो-वत्यै नमो नमः।।

नन्दायै लिंग-धारिण्यै, सुधा-धारात्मने नमः।

नमस्ते विश्व-मुख्यायै, रेवत्यै ते नमो नमः।।

बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु, लोक-धात्र्यै नमोऽस्तु ते।

नमस्ते विश्व-मित्रायै, नन्दिन्यै ते नमो नमः।।

पृथ्व्यै शिवामृतायै च, सु-वृषायै नमो नमः।

परापर-शताढ्यै, तारायै ते नमो नमः।।

पाश-जाल-निकृन्तिन्यै, अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।

शान्तायै च वरिष्ठायै, वरदायै नमो नमः।।

उग्रायै सुख-जग्ध्यै च, सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते।

ब्रह्मिष्ठायै-ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।

प्रणतार्ति-प्रभञजिन्यै, जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।

सर्वापत्-प्रति-पक्षायै, मंगलायै नमो नमः।।

शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे।

सर्वस्यार्ति-हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।

निर्लेपायै दुर्ग-हन्त्र्यै, सक्षायै ते नमो नमः।

परापर-परायै च, गंगे निर्वाण-दायिनि।।

गंगे ममाऽग्रतो भूया, गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः।

गंगे मे पार्श्वयोरेधि, गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः।।

आदौ त्वमन्ते मध्ये च, सर्व त्वं गांगते शिवे!

त्वमेव मूल-प्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।।

गंगे त्वं परमात्मा च, शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।

फल-श्रुति

य इदं पठते स्तोत्रं, श्रृणुयाच्छ्रद्धयाऽपि यः।

दशधा मुच्यते पापैः, काय-वाक्-चित्त-सम्भवैः।।

रोगस्थो रोगतो मुच्येद्, विपद्भ्यश्च विपद्-युतः।

मुच्यते बन्धनाद् बद्धो, भीतो भीतेः प्रमुच्यते।।

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