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    Devshayani Ekadashi 2024: भगवान विष्णु की पूजा करते समय जरूर करें इस चालीसा का पाठ, चमक उठेगा सोया हुआ भाग्य

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 17 Jul 2024 07:00 AM (IST)

    वैदिक पंचाग के अनुसार देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2024) पर कई मंगलकारी योग का निर्माण हो रहा है। इन योग में भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करने पर साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से जाने-अनजाने में किए गये पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है।

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    Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Devshayani Ekadashi 2024: ज्योतिषीय गणना के अनुसार, 17 जुलाई यानी आज देवशयनी एकादशी है। यह पर्व हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस अवसर पर साधक भक्ति भाव से भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना कर रहे हैं। मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया गया है। साथ ही विशेष पूजा का आयोजन किया गया है। धार्मिक मत है कि धन और माया के स्वामी भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संताप दूर हो जाते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो देवशयनी एकादशी पर स्नान-ध्यान कर विधिवत श्रीहरि विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय कृष्ण चालीसा का पाठ जरूर करें।

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    यह भी पढ़ें: 16 या 17 जुलाई, कब है देवशयनी एकादशी? नोट करें पूजा और पारण का सही समय

    कृष्ण चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

    अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

    जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

    करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

    जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

    जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

    जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

    जय नट-नागर नाग नथैया।

    कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

    पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

    आओ दीनन कष्ट निवारो॥

    वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

    होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

    आओ हरि पुनि माखन चाखो।

    आज लाज भारत की राखो॥

    गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

    मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

    रंजित राजिव नयन विशाला।

    मोर मुकुट वैजयंती माला॥

    कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

    कटि किंकणी काछन काछे॥

    नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

    छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

    मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

    आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

    करि पय पान, पुतनहि तारयो।

    अका बका कागासुर मारयो॥

    मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

    भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

    सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

    मसूर धार वारि वर्षाई॥

    लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

    गोवर्धन नखधारि बचायो॥

    लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

    मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

    दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

    कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

    नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

    चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

    करि गोपिन संग रास विलासा।

    सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

    केतिक महा असुर संहारयो।

    कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

    मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

    उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

    महि से मृतक छहों सुत लायो।

    मातु देवकी शोक मिटायो॥

    भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

    लाये षट दश सहसकुमारी॥

    दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

    जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

    असुर बकासुर आदिक मारयो।

    भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

    दीन सुदामा के दुःख टारयो।

    तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

    प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

    दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

    लखि प्रेम की महिमा भारी।

    ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

    भारत के पारथ रथ हांके।

    लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

    निज गीता के ज्ञान सुनाये।

    भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

    मीरा थी ऐसी मतवाली।

    विष पी गई बजाकर ताली॥

    राना भेजा सांप पिटारी।

    शालिग्राम बने बनवारी॥

    निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

    उर ते संशय सकल मिटायो॥

    तब शत निन्दा करी तत्काला।

    जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

    जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

    दीनानाथ लाज अब जाई॥

    तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

    बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

    अस नाथ के नाथ कन्हैया।

    डूबत भंवर बचावत नैया॥

    सुन्दरदास आस उर धारी।

    दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

    नाथ सकल मम कुमति निवारो।

    क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

    खोलो पट अब दर्शन दीजै।

    बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

    ॥ दोहा ॥

    यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

    अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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