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    Ramayan Story: माता सीता ने झूठ बोलने पर किसे दिया था श्राप, आज भी झेल रहे हैं परिणाम

    माता सीता भगवान श्रीराम की धर्मपत्नी और रामायण (Ramayan Katha) की एक मुख्य पात्र रही हैं। भगवान राम को जब वनवास जाना पड़ा तो माता सीता ने भी अपना पत्नी धर्म निभाते हुए उनका साथ दिया। एक प्रसंग के अनुसार माता सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान भी किया था। चलिए जानते हैं इसके पीछे की अद्भुत कथा।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Sun, 11 May 2025 03:56 PM (IST)
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    Ramayan Story: माता सीता ने क्यों किया राजा दशरथ का पिंडदान?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अलग-अलग भाषाओं में लिखी गई रामायण में से महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखी गई रामायण और तुलसीदास जी द्वारा अवधि में लिखी गई रामचरितमानस सबसे अधिक प्रचलित है। आज हम आपको रामायण में वर्णित एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार, माता सीता ने फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल को श्राप दिया था, तो वहीं इस वृक्ष को वरदान प्राप्त हुआ।

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    मिलती है ये कथा

    रामायण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार वनवास को दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण जी समेत पिंडदान की सामग्री लेने गए हुए थे। तभी माता सीता को राजा दशरथ की आवाज सुनाई दी और उन्हें यह आभास हुआ कि राजा दशरथ उनके समक्ष ही खड़े हैं।

    तब उन्होंने सोचा कि शायद वह बहुत अधिक पीड़ा में होंगे, तब उन्होंने राजा दशरथ का पिंडदान करने का निर्णय लिया, लेकिन उन्होंने सोचा के पुत्र के होते हुए वह अपने ससुर का पिंडदान कैसे कर सकती हैं।

    (Picture Credit: Instagram)

    इन्हें बनाया साक्षी

    तभी उन्हें राजा दशरथ की आवाज सुनाई दी, जो कह रहे थे कि "हे सीते! पुत्रवधु भी कुल का ही एक अभिन्न अंग है। समय निकल जाने पर मुझे मोक्ष प्राप्त नहीं होगा, इसलिए मेरी यह इच्छा है कि तुम ही मेरा पिंडदान करो।'

    तब माता सीता राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए फल्गु नदी के किनारे पहुंची और उन्होंने हथेली पर जल लेकर, फल्गु नदी, वहां स्थित गाय, केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानते हुए राजा दशरथ का पिंडदान किया। इससे राजा दशरथ की आत्मा पृथ्वीलोक से मुक्त होकर गई परलोक गमन कर गई। जाते-जाते उन्होंने माता सीता को आशीर्वाद भी दिया।

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    केवल वट वृक्ष ने बोला सच

    जब  भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी वापस लौटे, तब माता सीता ने उन्हें सारी बात बताई। यह सुनने के बाद रामजी को आश्चर्य हुआ, तब माता सीता ने पिंडदान के दौरान बनाए गए चारों साक्षियों को सत्य बताने के लिए कहा।

    लेकिन भय के कारण फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल ने इससे साफ इंकार कर दिया कि उन्होंने माता सीता को राजा दशरथ का पिंडदान करते देखा है। तब केवल वटवृक्ष ने ही इस बात को स्वीकार किया कि माता सीता ने राजा का पिंडदान किया था।

    मिला था ये श्राप

    फल्गु नदी, गाय और केतकी के फूल के झूठ बोलने पर माता सीता ने तीनों को श्राप दिया। माता सीता ने फल्गु नदी को श्राप दिया कि उसका सारा जल सूख जाएगा। वहीं गाय को श्राप मिला कि उसे मनुष्यों का जूठा खाना पड़ेगा। केतकी के फूल को माता सीता ने श्राप दिया कि उन्हें पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। क्योंकि वटवृक्ष ने सत्य का साथ दिया था, इसलिए माता सीता ने उसे लंबी उम्र का वरदान दिया।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।