क्यों शादी से पहले मां शबरी बन गईं सन्यासी, महाकुंभ से जुड़ा है गहरा नाता
मां शबरी का संबंध भील समुदाय और शबर जाति से था। शास्त्रों के अनुसार जिस जगह पर मां शबरी की मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की मुलाकात हुई थी। उस जगह को अब शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़ में है। शास्त्रों के मुताबिक विवाह से पहले ही मां शबरी (Shabari story) सन्यासी बन गई थीं। आइए जनते हैं इससे जुड़ी कथा के बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ramayana tales: शास्त्रों के अनुसार, मां शबरी भगवान श्री राम की परम भक्त थीं। उन्होंने अपने जीवन के दौरान प्रभु नाम का जप किया था। धार्मिक ग्रंथ रामायण में मां शबरी और भगवान राम जी की मुलाकात का विशेष उल्लेख किया गया है। मां शबरी के जीवन से कई सीख मिलती है, जिन्हें अपनाने से जीवन सफल होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर राम जी और मां शबरी की मुलाकात हुई थी। इसी वजह से दिन को हर साल शबरी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
मां शबरी को बचपन का नाम श्रमणा था। पौराणिक कथा के अनुसार, जब मां शबरी विवाह के योग्य हुई, तो उनके पिता ने भील कुमार से उनका विवाह तय किया। उस समय पिता ने बारात के स्वागत के लिए बड़ी संख्या में जानवरों की बलि देने की सोची थी। मां शबरी ने इस रिवाज का विरोध किया। उस समय मां शबरी (Shabari abandonment) ने न केवल जानवरों को कैद बंधन से मुक्त कर दिया, बल्कि खुद को भी भौतिक बंधनों से मुक्त कर दिया। इसके बाद वह जंगल में ऋषियों के पास पहुंच गईं। उस समय ऋषियों ने मां शबरी को कन्या समझ कर आश्रम से निकाल दिया। इसके बाद वह नदी का रास्ता साफ करती थीं। रास्ते में से कांटे भी हटाती थीं।
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मां शबरी के इस काम को देख मतंग ऋषि प्रसन्न हुए और उन्हें अपने आश्रम में स्थान दिया। मां शबरी ने मतंग ऋषि के पिता मानकर सेवा और सम्मान किया। जब मतंग ऋषि देह त्याग करने वाली अवस्था में थे। उस समय मां शबरी ने उनसे कहा- पहले ही वह अपने पिता को छोड़कर आई है। अब आप भी जा रहे हैं, तो मेरी रक्षा कौन करेगा? तब मतंग ऋषि ने कहा कि राम जी की भक्ति करो। भगवान राम तुम्हारी रक्षा करेंगे। इसके बाद से ही मां शबरी राम जी से मिलने का इंतजार के साथ प्रभु राम के नाम का ध्यान करने लगी। वनवास के दौरान राम जी की फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मुलाकात (भेंट) मां शबरी से हुई थी।
मां शबरी ने राम जी को खिलाएं थे जूठे मीठे
आराध्य राम से मिलन के दिन प्रभु के खाने के लिए बेर का इंतजाम किया था। इसके बाद राम जी और लक्ष्मण जी मां शबरी की कुटिया पर आएं, जिसके बाद मां शबरी ने उनके चरण धोए और जूठे बेर खिलाएं। मां शबरी चाहती थीं कि खट्टे बेर राम जी के मुंह में न चले जाएं, तो इसके लिए वह बेरों को चख कर रखती थीं। इसके बाद राम जी को बेर खिलाती थीं।
पूर्व जन्म में मां शबरी महारानी थी। तो उन्होंने महाकुंभ में स्नान और ऋषियों के साथ मंत्र जप करने की करने की इच्छा जाहिर की। ऐसे में राजा ने मां शबरी को ऋषियों के साथ मंत्र जप करने की मनाही की। उस समय मां शबरी ने प्राण त्यागने का निर्णय लिया और मां गंगा से वरदान मांगा कि अगले जन्म में मुझे न इतना खूबसूरत बनाना और न ही राजा के घर में जन्म देना।
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