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    Ramadan 2025: आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का महीना है रमजान

    By Jagran News Edited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 25 Mar 2025 01:22 PM (IST)

    रमजान (Ramadan 2025) महीने के आखिरी दिन चांद देखकर रोजा किया जाता है। इसके अगले दिन यानी शव्वाल माह के पहले दिन ईद मनाई जाती है। यह त्योहार दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर लोग नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को गले लगाकर ईद की बधाई देते हैं। रमजान के दौरान तीस दिनों तक रोजे रखे जाते हैं।

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    Ramadan 2025: रमजान के महीने में लोग एक दूसरे की मदद करते हैं

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस्लाम धर्म में रमजान को नेकी और इबादत का महीना माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रमजान के दौरान बंदे खुदा के बेहद करीब होते हैं। इस महीने में लोग प्रतिदिन रोजे रख पांच वक्त की नमाज अदा करते हैं। साथ ही रमजान के दौरान दान करते हैं। इस महीने में जकात भी दिया जाता है। रमजान का महीना बेहद पाक होता है।

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    धार्मिक मत है कि रमजान महीने में रोजे रख परवर दिगार की इबादत करने और दान करने से बंदे पर अल्लाह यानी खुदा की रहमत बरसती है। उनकी रहमत से बंदे में ईमान जागता है। बंदा नेकी की राह पर चलकर लोगों की मदद करता है। इस महीने में जरूरतमंदों की दिल से मदद करनी चाहिए। इस्लाम धर्म में पुण्य काम की प्रधानता है। इसके लिए रमजान के महीने में लोग एक दूसरे की मदद करते हैं। साथ ही हर्षोउल्लास के साथ रमजान मनाया जाता है। इस महीने में नेकी करने का फल कई गुना मिलता है।

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    डा. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद (साहित्यकार व इस्लामिक मामलों के जानकार) बताते हैं कि रमजान, इस्लाम धर्म में 'आत्मसंयम, इबादत और परोपकार का पवित्र महीना है। हालांकि, उपवास केवल इस्लाम तक सीमित नहीं है। यह सभी प्रमुख धर्मों में आत्मशुद्धि और ईश्वर के करीब जाने का एक माध्यम रहा है। हिंदू धर्म में एकादशी और नवरात्रि के व्रत, ईसाई धर्म में लेंट, यहूदी धर्म में योम किप्पुर और जैन धर्म में पर्युषण जैसे उपवास देखे जाते हैं। सभी में मूल उद्देश्य आत्मसंयम, मन पर नियंत्रण और आध्यात्मिक विकास है। रमजान इन मूल्यों को और भी गहराई से अपनाने का अवसर देता है। मुसलमान सुबह से शाम तक खाने-पीने और सांसारिक इच्छाओं से दूर रहते हैं।

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    यह सिर्फ भूख और प्यास सहन करना नहीं है, बल्कि बुरे विचारों, क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाओं पर काबू पाना है। इससे इंसान में सहानुभूति और करुणा का विकास होता है। रमजान में लगातार इबादत, कुरान का पाठ और तौबा (प्रायश्चित) से दिल की सफाई होती है। यह महीना आत्मविश्लेषण का अवसर देता है, जिसमें इंसान अपनी गलतियों को पहचानकर ईश्वर से क्षमा मांगता है। यह सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और आत्मविकास की यात्रा है।