Devshayani Ekadashi 2025: कैसे हार के भी जीत गए राजा बलि, सब गंवाकर पाया श्रीहरि का साथ
भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उनसे सब कुछ ले लिया पर उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपना सानिध्य दिया। बलि ने भगवान विष्णु को पाताल लोक में अपने साथ रहने का वचन दिया जिसे निभाने के लिए वे हर साल देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में निवास करते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। असुरों के राजा बलि जितने बड़े पराक्रमी थे, उससे भी ज्यादा बड़े दानी थे। उन्होंने अपनी तपस्या और युद्ध के बल पर तीनों लोक पर अधिकार कर लिया था और देवताओं से स्वर्ग छीन लिया था। तब देवराज इंद्र सहित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने पांचवां अवतार वामन का लिया।
इस अवतार में उन्होंने राजा बालि से सब कुछ ले लिया। यहां तक कि उनके प्राण भी। मगर, असली कहानी इसके बाद शुरू होती है, जब सब कुछ गंवाकर भी राजा बलि ने वो पा लिया, जो दूसरों के लिए असंभव है। वह है श्रीहरि का सानिध्य और उनका प्रेम। देवशयनी एकादशी 6 जुलाई 2025 को है। इस मौके पर पढ़िए ये कहानी।
पढ़िए दान की विशेष कहानी
जब देवताओं से स्वर्ग छिन गया, तो इंद्रदेव समेत सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। इसके बाद वह राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे और तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि ने दान देने का वचन दिया।
तब वामन जी ने विशाल रूप धारण करके एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से पूछा कि इसे कहां रखूं। तब राजा बलि ने अपना सिर भगवान के सामने झुकाकर कहा कि मेरे सिर पर रख दीजिए। त्रिलोक विजेता उस दिन अपना सबकुछ हार गया।
फिर हारकर भी जीत ली बाजी
राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस पर राजा बलि ने कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं, तो मेरे साथ ही पाताल लोक में रहें चलकर। अपने वचन से बंधे भगवान विष्णु बलि के साथ पाताल लोक में रहने लगे।
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मां लक्ष्मी फिर लाईं बैकुंठ धाम
इधर, मां लक्ष्मी को जब इस बात का पता चला, तो वह पाताल लोक पहुंची और उन्होंने बलि को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। इसके साथ वचन मांगा कि श्रीहरि को अपने वचन से मुक्त कर दें। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को वहां से जाने की अनुमति दे दी।
मगर, साथ ही यह भी कहा कि वह चार महीने के लिए पाताल लोक में उसके साथ रहेंगे। मान्यता है कि भगवान विष्णु राजा बलि को दिए गए वचन का पालन करने के लिए देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक चार महीने के लिए पाताल लोक में निवास करते हुए योग निद्रा में रहते हैं।
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