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Rahu-Ketu Pujan: राहु-केतु की मदाहशा से हैं परेशान, तो शनिवार के दिन जरूर करें उनके कवच का पाठ

हिंदू धर्म में राहु-केतु की पूजा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जिनकी कुंडली में ये ग्रह मजबूत होते हैं उन्हें सभी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं। वहीं अगर ये ग्रह कुंडली में नीच स्थान पर पहुंच जाएं तो काफी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शनिवार के दिन राहु-केतु की पूजा शुभ मानी जाती है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Published: Sat, 16 Mar 2024 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2024 07:00 AM (IST)
Rahu-Ketu Pujan: राहु-केतु कवच का पाठ इस दिन करें -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Rahu-Ketu Pujan: ज्‍योतिष शास्‍त्र में राहु-केतु को क्रूर ग्रह माना गया है। ऐसी मान्यता है कि, जिनकी कुंडली में ये ग्रह मजबूत होते हैं, उन्हें सभी चीजें बहुत आसानी से मिल जाती हैं। वहीं, अगर ये ग्रह कुंडली में नीच स्थान पर पहुंच जाएं, तो काफी ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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शनिवार के दिन राहु-केतु की पूजा शुभ मानी जाती है। ऐसे में इस दिन राहु-केतु की पूजा के बाद उनके कवच का पाठ अवश्य करें, जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।

॥राहु ग्रह कवच॥

अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः ।

अनुष्टुप छन्दः । रां बीजं । नमः शक्तिः ।

स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥

सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥

निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः ।

चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥

नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम ।

जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः ॥

भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ ।

पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः ॥

कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः ।

स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥

गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः ।

सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥

राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो ।

भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् ।

प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु

रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥

॥केतु ग्रह कवच॥

अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः ।

अनुष्टप् छन्दः । केतुर्देवता । कं बीजं । नमः शक्तिः ।

केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥

केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम् ।

प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥

चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः ।

पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥

घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः ।

पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः ॥

हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः ।

सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥

ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः ।

पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः ॥

य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम् ।

सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत् ॥

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डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/जयोतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देंश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी'।


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