Radha Rani Puja: क्या लड्डू गोपाल की तरह घर में स्थापित कर सकते हैं लाडली जी की मूर्ति?
राधा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका के रूप में जाना जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि कृष्ण जी से पहले राधा रानी को याद करना चाहिए इससे भगवान ...और पढ़ें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जिस तरह लड्डू गोपाल को भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप में पूजा जाता है, ठीक उसी तरह लाडली जी, राधा रानी का बाल स्वरूप मानी जाती हैं। आपने कई लोगों को घर में लड्डू गोपाल की सेवा करते हुए देखा होगा। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि क्या आप घर में लाडली जी को विराजमान कर सकते हैं।
मिलते हैं अच्छे परिणाम
लड्डू गोपाल की तरह ही घर में लाडली जी को रखना भी काफी शुभ माना जाता है। साधक को राधा रानी के सेवा से भी जीवन में अच्छे परिणाम मिलते हैं। माना जाता है कि आप पूरे विधि-विधान से राधा जी की सेवा करते हैं, तो इससे भगवान कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्ध की कोई कमी नहीं होती।

ध्यान रखें ये बातें
राधा रानी जी के बाल स्वरूप को हमेशा लड्डू गोपाल के साथ रखना चाहिए। क्योंकि राधा जी के बिना कृष्ण भगवान की पूजा अधूरी मानी जाती है। आप राधा रानी जी की प्रतिमा को लड्डू गोपाल के दाएं हाथ की ओर स्थापित कर सकते हैं। सबसे पहले श्रीराधा रानी की सेवा करनी चाहिए और इसके बाद में लड्डू गोपाल की।
इस तरह करें पूजा (Radha Rani Puja vidhi)
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद राधा रानी जी का पंचामृत से अभिषेक करें और फिर साफ पानी से स्नान करवाएं। अब उन्हें नई पोशाक पहनाकर उनका श्रृंगार करें। राधा रानी को फल, फूल, अक्षत, चंदन, इत्र आदि अर्पित करें। अंत में राधा रानी और श्रीकृष्ण की आरती करें और सभी में प्रसाद बांटें।
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(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
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करें इन मंत्रों का जप
भोग लगाने का मंत्र - 'त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये। गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
ऊं ह्नीं राधिकायै नम:।
ऊं ह्नीं श्रीराधायै स्वाहा।
श्री राधा स्तुति -
नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।
रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।
नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।
ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।
नम: सरस्वतीरूपे नम: सावित्रि शंकरि।
गंगापद्मावनीरूपे षष्ठि मंगलचण्डिके।।
नमस्ते तुलसीरूपे नमो लक्ष्मीस्वरुपिणी।
नमो दुर्गे भगवति नमस्ते सर्वरूपिणी।।
मूलप्रकृतिरूपां त्वां भजाम: करुणार्णवाम्।
संसारसागरादस्मदुद्धराम्ब दयां कुरु।।
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