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    अनमोल वचन

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 23 Apr 2016 10:32 AM (IST)

    महर्षि अरविंद कहते हैं कि कोई भी समस्या ऐसी नहीं है, जो मन की शक्ति से अधिक शक्तिशाली हो। मन को मजबूत कर किसी भी समस्या पर विजय पाई जा सकती है।

    महर्षि अरविंद कहते हैं कि कोई भी समस्या ऐसी नहीं है, जो मन की शक्ति से अधिक शक्तिशाली हो। मन को मजबूत कर किसी भी समस्या पर विजय पाई जा सकती है। इसके सामने शरीर की शक्ति कोई मायने नहीं

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    रखती है।

    कबीर के अनुसार, न तो बहुत ज्यादा बोलना अच्छा होता है और न ही बहुत अधिक चुप्पी अच्छी होती है। ठीक वैसे ही जैसे बहुत ज्यादा पानी बरसना अच्छा नहीं होता है और न तो बहुत अधिक धूप अच्छी होती है।

    चाणक्य का कथन है कि व्यक्ति अपने कर्म से महान बनता है, अपने जन्म से नहीं। इसलिए बिना फल की कामना किए कर्म करते रहना चाहिए।

    यावानर्थ उदपाने सर्वत: सम्प्लुतोदके ।

    तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानत:॥ (2-46)

    अर्थ : सभी तरफ से भरा जलाशय मिल जाने पर छोटे जलाशय में मनुष्य का जितना प्रयोजन रहता है, ब्रह्म को तत्वरूप में जानने वाले का समस्त वेदों में उतना ही प्रयोजन रह जाता है।

    भावार्थ : वेदों में ज्ञान है। उस ज्ञान का लक्ष्य ब्रह्म तक पहुंचना है। ब्रह्म अर्थात ऐसे घनीभूत ज्ञान तक पहुंचे, जहां कुछ भी जानने-समझने या विचार करने की आवश्यकता ही न रह जाए। ज्ञान हमें विचलित करता है, क्योंकि ज्ञान के अनेक दृष्टिकोण होते हैं। हमें यह करना चाहिए अथवा नहीं करना चाहिए, हम अनेक दृष्टिकोणों से सोचते हैं और अर्जुन की तरह दुविधाग्रस्त हो जाते हैं। हम नहीं समझ पाते कि हमें क्या करना है। ऐसे में हमें उस घनीभूत ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है, जहां दृष्टिकोण नहीं हैं, जहां कोई दुविधा नहीं है। ज्ञान के सागर तक पहुंचकर ही हमें पता चलता है कि कर्म ही वह तत्व है, जिसकी हमें ज्ञान के बाद सर्वाधिक आवश्यकता पड़ती है, ब्रह्म अर्थात ज्ञान के उस सत्य तक पहुंचने के लिए।