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    Prakash Parv: सेवा की प्रतिमूर्ति थे गुरु हरिकृष्ण जी, जिन्होंने कम उम्र में प्राप्त की लोकप्रियता

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Mon, 18 Jul 2022 06:11 PM (IST)

    Prakash Parv बहुत ही कम समय में गुरुहरिकृष्ण साहिब ने सामान्य जनमानस के साथ अपने ज्ञान व्यवहार और सेवा से लोकप्रियता हासिल कर ली थी। इसी दौरान दिल्ली में हैजा छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया।

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    Prakash Parv: जब गुरु साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह ने उन्हें अपने बंगले में ठहराया।

    डा. दलबीर सिंह मल्होत्रा। गुरु हरिकृष्ण साहिब का जन्म 22 जुलाई, 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ। वे सप्तम गुरु हरराय साहिब एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। बड़े भाई रामराय को मुगल सल्तनत के पक्ष में खड़े होने की वजह से सिख पंथ से निष्कासित कर दिया गया था।

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    पांच वर्ष की छोटी आयु में गुरु हरिकृष्ण जी को गुरुपद प्रदान किया गया। इस बात से क्रोधित होकर बड़े भाई रामराय ने औरंगजेब से शिकायत की। औरंगजेब ने राजा जय सिंह को आदेश दिया कि गुरु हरिकृष्ण जी को उनके समक्ष उपस्थित करें। राजा जय सिंह ने गुरु जी को दिल्ली जाने का संदेश दिया। सिख संगतों एवं राजा जय सिंह के आग्रह करने पर वह दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गए। लालचंद नामक एक विद्वान एवं आध्यात्मिक व्यक्ति इस बात से विचलित था कि एक बालक को गुरु पद कैसे दिया जा सकता है। मार्ग में उसने गुरु साहिब को गीता के श्लोकों का अर्थ करने की चुनौती दी।

    गुरु साहिब ने साथ चल रहे एक गूंगे बहरे व निरक्षर व्यक्ति छज्जू झीवर के सिर पर अपनी छड़ी रख दी, तो वह अपने मुख से गीता के श्लोकों की व्याख्या करने लगा। इससे चकित और प्रभावित होकर लालचंद ने सिख धर्म अपना लिया। इस स्थान पर एक भव्य गुरु स्थान सुशोभित है, जिसे पंजोखरा साहिब (अंबाला के निकट) कहते हैैं। इसके बारे में मान्यता है कि यहां सरोवर में स्नान करके शारीरिक व मानसिक व्याधियों से छुटकारा मिलता है।

    जब गुरु साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह ने उन्हें अपने बंगले में ठहराया। गुरु साहिब के दर्शनों के लिए बंगले में तांता लग गया। कहा जाता है कि राजा जय सिंह ने कई सजी-संवरी महिलाओं को गुरु साहिब के पास भेजा और कहा कि वे इनमें से रानी को पहचानें। गुरु साहिब नौकरानी की वेशभूषा में उपस्थित महिला की गोद में जाकर बैठ गये। यही महिला रानी थी। बहुत ही कम समय में गुरुहरिकृष्ण साहिब ने सामान्य जनमानस के साथ अपने ज्ञान, व्यवहार और सेवा से लोकप्रियता हासिल कर ली थी। इसी दौरान दिल्ली में हैजा, छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया।

    मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील था। जात-पात, ऊंच-नीच को दरकिनार करते हुए गुरु साहिब ने सभी पीडि़तों की सेवा का अभियान चलाया। वे स्वयं भी सेवा में जुट गए। मानव सेवा ही उनका परम दर्शन था। दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं उन्हें 'बाला पीर'कहकर पुकारने लगे। जनभावना एवं परिस्थितियों को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें नहीं छेड़ सका। महामारी से ग्रस्त लोगों की अहर्निशि सेवा करते-करते गुरु साहिब स्वयं भी तेज ज्वर से पीडि़त हो गये और केवल 8 वर्ष की आयु में परलोक गमन कर गये। दिल्ली में जिस स्थान पर वे रहे, वह स्थान बंगला साहिब और जहां उन्होंने शरीर त्यागा, वह स्थान यमुना नदी के किनारे बाला साहिब के नाम से जाना जाता है।

    [सिख संस्कृति के अध्येता]