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    Pradosh Vrat 2025: आज प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा व्रत का पूरा फल

    Updated: Tue, 11 Mar 2025 09:00 AM (IST)

    प्रदोष व्रत को बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। माना जाता है कि इस दिन जो भक्त इस व्रत को रखते हैं उन्हें शिव- शक्ति की कृपा मिलती है। इस बार यह व्रत11 मार्च यानी आज रखा जा रहा है। वहीं इस दिन प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha Path 2025) का पाठ जरूर करना चाहिए जो इस प्रकार है।

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    Falgun Pradosh Vrat Kath: फाल्गुन प्रदोष व्रत कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है। यह भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत रखा जाता है और यह महीने में दो बार पड़ता है। इस साल यह 11 मार्च यानी आज के दिन रखा जा रहा है। इस दिन को भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है। इसलिए सभी शिव भक्तों को इस व्रत को रखने की सलाह दी जाती है।

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    वहीं, जो लोग इस व्रत को रखते हैं, उन्हें इसकी व्रत कथा (Pradosh Vrat 2025 Kath) का पाठ भी जरूर करना चाहिए, जो इस प्रकार है -

    फाल्गुन प्रदोष व्रत कथा ( Falgun Pradosh Vrat Katha)

    एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी रहती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस कारण वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी।

    वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

    तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

    दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह भी शिव भक्ति में लीन रहने लगी।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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