Pradosh Vrat 2025: वैशाख माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर इस विधि से करें पूजा, जानें इसका महत्व
वैशाख माह के अंतिम प्रदोष व्रत के इस पावन अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होगी। इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने का विधान है। यह व्रत (Pradosh Vrat 2025) आपको न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है बल्कि इससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तो चलिए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक पावन व्रत है। यह प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। वैशाख माह के अंतिम प्रदोष व्रत बहुत फलदायी माना जा रहा है। इस बार यह (Pradosh Vrat 2025) 9 मई, 2025 शुक्रवार के दिन पड़ेगा। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन के सभी दुखों का नाश होता है।
प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat 2025 Significance)
प्रदोष व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस तिथि पर प्रदोष काल पर शाम की पूजा का विधान और महत्व है। इस समय की गई पूजा विशेष फलदायी होती है। वैशाख माह का अंतिम प्रदोष व्रत इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह माह भगवान विष्णु को समर्पित है और इस माह में विष्णु जी के साथ भगवान शिव की पूजा बहुत शुभकारी मानी गई है।
पूजा विधि (Pradosh Vrat 2025 Puja Vidhi)
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
- भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- पूजा घर को साफ करें और भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
- भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करें।
- उन्हें बेलपत्र, धतूरा, भांग और सफेद फूल अर्पित करें।
- उन्हें चंदन, फल, धूप, दीप आदि चीजें भी अर्पित करें।
- खीर और ठंडई का भोग लगाएं।
- भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें।
- प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
- भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
- अगले दिन शिव प्रसाद से व्रत खोलें।
पूजा मंत्र (Pradosh Vrat 2025 Puja Mantra)
- ॐ पार्वतीपतये नमः॥
- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्:॥
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
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