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    Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर करें इस व्रत कथा का पाठ, मिलेगा भगवान शंकर का आशीर्वाद

    Updated: Mon, 27 Jan 2025 10:27 AM (IST)

    सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं। इस बार यह व्रत 27 जनवरी 2025 दिन सोमवार यानी आज के दिन रखा जा रहा है। कहते हैं कि इस दिन शिव पूजन से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है तो आइए इस दिन (Som Pradosh Vrat 2025) से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

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    Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत की महिमा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सोम प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग भगवान शिव और देवी पार्वती आराधना करते हैं। यह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार यह व्रत 27 जनवरी 2025, दिन सोमवार यानी आज के दिन रखा जा रहा है। सोमवार को पड़ने की वजह से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में जो साधक इस दिन (Som Pradosh Vrat 2025) भक्तिपूर्वक उपवास का पालन करते हैं, उन्हें शिव परिवार की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही भगवान शंकर सभी दुखों को दूर करते हैं।

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    कहते हैं कि जो लोग इस दिन कठिन व्रत का पालन कर रहे हैं, उन्हें इसकी कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए, तभी व्रत पूरा माना जाता है, तो आइए यहां पर पढ़ते हैं।

    सोम प्रदोष व्रत कथा (Som Pradosh Vrat Katha in Hindi)

    एक समय की बात है अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास करती थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस कारण से वो भिक्षा मांगकर अपना जीवन जी रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें, जिन्हें देखकर वह काफी दुखी हो गई थी। वह सोचने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के पश्चात वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की।

    तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ''हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है। अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।'' यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ''हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।'' जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने के लिए कहा। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने प्रदोष व्रत का पालन भाव के साथ किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

    दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। सोम प्रदोष व्रत के पुण्य-प्रताप से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान प्रदान किया, जिससे ब्राह्मणी की गरीबी दूर हो गई है और वह खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगी।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।