Pradosh Vrat 2025: शुक्र प्रदोष व्रत पर ऐसे प्राप्त करें शिव जी की कृपा, दूर होंगी सभी अड़चनें
प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है। इस दिन पर प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन होता है। आश्विन माह का पहला प्रदोष व्रत 19 सितंबर को किया जा रहा है जो शुक्र प्रदोष व्रत होने वाला है। इस दिन विशेष दिन पर शिव जी की कृपा प्राप्ति के लिए आज ये काम कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर माह में दो बार आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है। यह व्रत पुरुषों और महिलाओं दोनों ही द्वारा किया जाता है, जिससे शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। इस व्रत को करने से साधक को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उसकी इच्छाओं की भी पूर्ति होती है। आप इस दिन पर भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए ये विशेष काम कर सकते हैं।
इस तरह करें शिव जी की पूजा
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवितृ हो जाएं और साफ-सुथरे कपड़े पहनें। । इसके बाद घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें। अब शिव जी और पार्वती माता की आरंभ करें और कच्चे दूध, गंगाजल, और शुद्ध जल से शिव जी का अभिषेक करें। इसके बाद शिव जी को भांग, धतूरा, दूध आदि भी चढ़ाएं।
भोग के रूप में शिव जी को मखाने की खीर, या हलवा अर्पित कर सकते हैं। इसके साथ ही माता पार्वती को 16 शृंगार की सामग्री अर्पित करें। दीपक जलाकर भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। और सभी लोगों में प्रसाद बांटें। इस दिन शिव जी की पूजा का मुहूर्त ये रहेगा -
प्रदोष व्रत पूजा का मुहूर्त - शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात 8 बजकर 43 मिनट तक
करें इन चीजों का दान
शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सफेद चीजों जैसे सफेद मिठाई, चावल, दही, चीनी, और सफेद रंग के कपड़ों का दान करना शुभ माना गया है। इसके अतिरिक्त आप अन्न और धन का भी दान कर सकते हैं। इससे साधक को शिव जी की असीम कृपा की प्राप्ति होती है।
इस उपाय से होगा लाभ
शुक्र प्रदोष व्रत के दिन दूध में थोड़ा-सा केसर मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें। इस दौरान मन-ही-मन 'ऊँ नमः शिवाय' मंत्र का जप करते रहें। इससे आपको अपने किसी विशेष कार्य में सफलता मिल सकती है।
(Picture Credit: Freepik)
करें इन मंत्रों का जप
1. ॐ नमः शिवाय
2. ॐ नमो भगवते रूद्राय
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
4. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
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