Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Pradosh Vrat 2025: भगवान शिव की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 09:30 PM (IST)

    शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन मां लक्ष्मी की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही वैभव लक्ष्मी का व्रत रखा जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025) करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आर्थिक विषमता से भी मुक्ति मिलती है।

    Hero Image
    Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत में क्या करें और क्या न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शुक्रवार 19 सितंबर को आश्विन माह का पहला प्रदोष व्रत है। यह व्रत कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और मां पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा की जाएगी। साथ ही त्रयोदशी तिथि का व्रत रखा जाएगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इसके साथ ही त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध और तर्पण भी किया जाएगा। भगवान शिव की पूजा करने से न केवल कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है, बल्कि पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ करें। साथ ही पूजा का समापन शिव आरती से करें।

    शिव चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।

    कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

    भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

    अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

    वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

    मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

    कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

    नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

    कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

    देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

    किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

    तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

    आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

    त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

    किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

    दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

    वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

    प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

    कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

    पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

    सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

    एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

    कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

    जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

    दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

    त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

    लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

    मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥

    स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

    धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

    अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

    शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

    योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

    नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

    जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

    ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

    पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

    पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥

    त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

    धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

    जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

    कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

    ॥ दोहा ॥

    नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।

    तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥

    मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।

    स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥

    शिवजी की आरती

    ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा।

    ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    एकानन चतुराननपञ्चानन राजे।

    हंसासन गरूड़ासनवृषवाहन साजे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    दो भुज चार चतुर्भुजदसभुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूप निरखतेत्रिभुवन जन मोहे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    अक्षमाला वनमालामुण्डमाला धारी।

    त्रिपुरारी कंसारीकर माला धारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    श्वेताम्बर पीताम्बरबाघम्बर अंगे।

    सनकादिक गरुणादिकभूतादिक संगे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    कर के मध्य कमण्डलुचक्र त्रिशूलधारी।

    सुखकारी दुखहारीजगपालन कारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानत अविवेका।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    लक्ष्मी व सावित्रीपार्वती संगा।

    पार्वती अर्द्धांगी,शिवलहरी गंगा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा।

    भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    जटा में गंगा बहत है,गल मुण्डन माला।

    शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी।

    नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    त्रिगुणस्वामी जी की आरतीजो कोइ नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    यह भी पढ़ें- Pradosh Vrat 2025: अक्टूबर महीने में कब-कब है प्रदोष व्रत? यहां नोट करें शुभ मुहूर्त और महत्व

    यह भी पढ़ें- Pradosh Vrat 2025: इस चमत्कारी स्तोत्र से करें भगवान शिव को प्रसन्न, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।