Pitru Paksha 2025: कब किया जाएगा मृत पुरुषों का श्राद्ध? जानें मुहूर्त, तर्पण के नियम और महत्व
पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) में दिवंगत पूर्वजों का श्राद्ध करने का बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान पितर पृथ्वी पर आते हैं। इस दौरान उनका श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और पितृ ऋण उतरता है जिससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बड़ा महत्व है। यह 15 दिनों की वह अवधि है, जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों को से जुड़े अनुष्ठान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में पितर पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण और श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2025) की शुरुआत हो चुकी है, जिसका समापन सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि दिवंगत पुरुषों का श्राद्ध कब करना चाहिए?
श्राद्ध का महत्व (Shradh Significance)
पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। श्राद्ध करने से पितृ ऋण उतरता है और वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह कृतज्ञता, प्यार और सम्मान का प्रतीक है।
कब करें दिवंगत पुरुषों का श्राद्ध? (When To Perform The Shraddha Of Deceased Persons?)
- सही तिथि पर - मृत्य पुरुषों का श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता है, जिस तिथि पर पूर्वज का निधन हुआ हो। अगर किसी वजह से तिथि की जानकारी न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन भी श्राद्ध करना शुभ माना जाता है। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- शुभ मुहूर्त - श्राद्ध कर्म करने का सबसे अच्छा समय दोपहर का होता है, जिसे 'कुतप काल' या 'रौहिण मुहूर्त' कहा जाता है। यह समय अलग-अलग तिथियों के अनुसार बदलता रहता है, लेकिन सामान्य तौर पर कुतप मुहूर्त सुबह 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 43 मिनट के बीच होती है।
- दिशा - श्राद्ध करते समय व्यक्ति को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
- आवश्यक सामग्री - श्राद्ध में कुश घास और काले तिल का उपयोग किया जाता है। इसके बिना श्राद्ध को अधूरा माना जाता है।
- भोजन - श्राद्ध के लिए सात्विक भोजन तैयार किया जाता है। भोजन में खीर, पूड़ी, और कद्दू की सब्जी जैसी चीजें शामिल होती हैं।
- दान - श्राद्ध के बाद भोजन का कुछ हिस्सा गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को खिलाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है। इसके साथ ही ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा भी जरूर देना चाहिए।
- सात्विक जीवन - पितृ पक्ष के दौरान व्यक्ति को सात्विकता का ध्यान रखना चाहिए।
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