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    Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत पर जरूर करें इस चालीसा का पाठ, भोलेनाथ का मिलेगा आशीर्वाद

    सनातन धर्म में प्रदोष व्रत बेहद शुभ माना गया है। इस दिन लोग भगवान शंकर की उपासना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि शाम के समय शिव पूजन करने से और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से धन से जुड़ी सभी दिक्कतें दूर होती हैं। साथ ही घर में बरकत आती है। इस बार ये व्रत (Benefits of Pradosh Vrat) 11 जनवरी को रखा जाएगा।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 04 Jan 2025 02:27 PM (IST)
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    Pradosh Vrat 2025: पार्वती चालीसा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को प्रमुख पर्वों में से एक माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा का विधान है। वैदिक पंचांग के अनुसार, दिन शनिवार 11 जनवरी को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। कहते हैं कि इस दिन भक्तों को सच्ची श्रद्धा के व्रत रखना चाहिए, क्योंकि यह दिन भोलेनाथ को बहुत प्रिय है। ऐसे में सुबह उठकर पवित्र स्नान करें। भोले बाबा को भांग, धतूरा, आक, बेल पत्र आदि चीजें अर्पित करें।

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    उनके (Pradosh Vrat Rules) साथ देवी पार्वती की भी विधिवत पूजा करें और पार्वती चालीसा का पाठ करें। आरती से पूजा पूर्ण करें। इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होगी।

    ।।पार्वती चालीसा।।

    ॥ दोहा ॥

    जय गिरी तनये दक्षजे,शम्भु प्रिये गुणखानि।

    गणपति जननी पार्वती,अम्बे! शक्ति! भवानि॥

    ॥ चौपाई ॥

    ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे।

    पंच बदन नित तुमको ध्यावे॥

    षड्मुख कहि न सकत यश तेरो।

    सहसबदन श्रम करत घनेरो॥

    तेऊ पार न पावत माता।

    स्थित रक्षा लय हित सजाता॥

    अधर प्रवाल सदृश अरुणारे।

    अति कमनीय नयन कजरारे॥

    ललित ललाट विलेपित केशर।

    कुंकुम अक्षत शोभा मनहर॥

    कनक बसन कंचुकी सजाए।

    कटी मेखला दिव्य लहराए॥

    कण्ठ मदार हार की शोभा।

    जाहि देखि सहजहि मन लोभा॥

    बालारुण अनन्त छबि धारी।

    आभूषण की शोभा प्यारी॥

    नाना रत्न जटित सिंहासन।

    तापर राजति हरि चतुरानन॥

    इन्द्रादिक परिवार पूजित।

    जग मृग नाग यक्ष रव कूजित॥

    गिर कैलास निवासिनी जय जय।

    कोटिक प्रभा विकासिन जय जय॥

    त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी।

    अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी॥

    हैं महेश प्राणेश! तुम्हारे।

    त्रिभुवन के जो नित रखवारे॥

    उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब।

    सुकृत पुरातन उदित भए तब॥

    बूढ़ा बैल सवारी जिनकी।

    महिमा का गावे कोउ तिनकी॥

    सदा श्मशान बिहारी शंकर।

    आभूषण हैं भुजंग भयंकर॥

    कण्ठ हलाहल को छबि छायी।

    नीलकण्ठ की पदवी पायी॥

    देव मगन के हित अस कीन्हों।

    विष लै आपु तिनहि अमि दीन्हों॥

    ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि।

    दूरित विदारिणी मंगल कारिणि॥

    देखि परम सौन्दर्य तिहारो।

    त्रिभुवन चकित बनावन हारो॥

    भय भीता सो माता गंगा।

    लज्जा मय है सलिल तरंगा॥

    सौत समान शम्भु पहआयी।

    विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी॥

    तेहिकों कमल बदन मुरझायो।

    लखि सत्वर शिव शीश चढ़ायो॥

    नित्यानन्द करी बरदायिनी।

    अभय भक्त कर नित अनपायिनी॥

    अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनि।

    माहेश्वरी हिमालय नन्दिनि॥

    काशी पुरी सदा मन भायी।

    सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी॥

    भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री।

    कृपा प्रमोद सनेह विधात्री॥

    रिपुक्षय कारिणि जय जय अम्बे।

    वाचा सिद्ध करि अवलम्बे॥

    गौरी उमा शंकरी काली।

    अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली॥

    सब जन की ईश्वरी भगवती।

    पतिप्राणा परमेश्वरी सती॥

    तुमने कठिन तपस्या कीनी।

    नारद सों जब शिक्षा लीनी॥

    अन्न न नीर न वायु अहारा।

    अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा॥

    पत्र घास को खाद्य न भायउ।

    उमा नाम तब तुमने पायउ॥

    तप बिलोकि रिषि सात पधारे।

    लगे डिगावन डिगी न हारे॥

    तब तव जय जय जय उच्चारेउ।

    सप्तरिषि निज गेह सिधारेउ॥

    सुर विधि विष्णु पास तब आए।

    वर देने के वचन सुनाए॥

    मांगे उमा वर पति तुम तिनसों।

    चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों॥

    एवमस्तु कहि ते दोऊ गए।

    सुफल मनोरथ तुमने लए॥

    करि विवाह शिव सों हे भामा।

    पुनः कहाई हर की बामा॥

    जो पढ़िहै जन यह चालीसा।

    धन जन सुख देइहै तेहि ईसा॥

    ॥ दोहा ॥

    कूट चन्द्रिका सुभग शिर,जयति जयति सुख खानि।

    पार्वती निज भक्त हित,रहहु सदा वरदानि॥

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