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    Paush Amavasya 2024: पौष अमावस्या पर करें इस चालीसा का पाठ, पितृ होंगे प्रसन्न

    सनातन धर्म में पौष अमावस्या बेहद खास मानी जाती है। यह तिथि पितृ पूजा के लिए अच्छी होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान के साथ पितरों की पूजा करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही कार्यों में आ रही बाधा समाप्त होती है तो चलिए इस दिन (Paush Amavasya 2024 Date) से जुड़ी कुछ विशेष बातों को जानते हैं।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Thu, 19 Dec 2024 03:40 PM (IST)
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    Paush Amavasya 2024: गंगा चालीसा का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण दिन मानी जाती है। यह वह समय है, जब चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है। इसके साथ ही इस दिन किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, साल की अंतिम अमावस्या पौष महीने में मनाई जाती है, जो इस बार 30 दिसंबर को (Somvati Amavasya 2024 Date) पड़ रही है। पितृ तर्पण और उनकी आराधना के लिए यह दिन बहुत विशेष होता है, कहते हैं कि इस दिन पितरों का पिंडदान व उनके तर्पण के बाद गंगा चालीसा का पाठ भी बहुत ही फलदायी माना जाता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

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    ॥गंगा चालीसा॥

    ''दोहा''

    जय जय जय जग पावनी,

    जयति देवसरि गंग।

    जय शिव जटा निवासिनी,

    अनुपम तुंग तरंग॥

    ।।चौपाई।।

    जय जय जननी हरण अघ खानी।

    आनंद करनि गंग महारानी॥

    जय भगीरथी सुरसरि माता।

    कलिमल मूल दलनि विख्याता॥

    जय जय जहानु सुता अघ हनानी।

    भीष्म की माता जगा जननी॥

    धवल कमल दल मम तनु साजे।

    लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥

    वाहन मकर विमल शुचि सोहै।

    अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥

    जड़ित रत्न कंचन आभूषण।

    हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥

    जग पावनि त्रय ताप नसावनि।

    तरल तरंग तंग मन भावनि॥

    जो गणपति अति पूज्य प्रधाना।

    तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥

    ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी।

    श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥

    साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो।

    गंगा सागर तीरथ धरयो॥

    अगम तरंग उठ्यो मन भावन।

    लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥

    तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट।

    धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥

    धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी।

    तारणि अमित पितु पद पिढी॥

    भागीरथ तप कियो अपारा।

    दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥

    जब जग जननी चल्यो हहराई।

    शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥

    वर्ष पर्यंत गंग महारानी।

    रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥

    पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।

    तब इक बूंद जटा से पायो॥

    ताते मातु भइ त्रय धारा।

    मृत्यु लोक, नाभ, अरु पातारा॥

    गईं पाताल प्रभावति नामा।

    मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥

    मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि।

    कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥

    धनि मइया तब महिमा भारी।

    धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥

    मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।

    धनि सुरसरित सकल भयनासिनी॥

    पान करत निर्मल गंगा जल।

    पावत मन इच्छित अनंत फल॥

    पूर्व जन्म पुण्य जब जागत।

    तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥

    जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।

    तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥

    महा पतित जिन काहू न तारे।

    तिन तारे इक नाम तिहारे॥

    शत योजनहू से जो ध्यावहिं।

    निशचाई विष्णु लोक पद पावहिं॥

    नाम भजत अगणित अघ नाशै।

    विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥

    जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।

    धर्मं मूल गंगाजल पाना॥

    तब गुण गुणन करत दुख भाजत।

    गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

    गंगाहि नेम सहित नित ध्यावत।

    दुर्जनहुँ सज्जन पद पावत॥

    बुद्दिहिन विद्या बल पावै।

    रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥

    गंगा गंगा जो नर कहहीं।

    भूखे नंगे कबहु न रहहि॥

    निकसत ही मुख गंगा माई।

    श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥

    महाँ अधिन अधमन कहँ तारें।

    भए नर्क के बंद किवारें॥

    जो नर जपै गंग शत नामा।

    सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥

    सब सुख भोग परम पद पावहिं।

    आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥

    धनि मइया सुरसरि सुख दैनी।

    धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

    कंकरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।

    सुन्दरदास गंगा कर दासा॥

    जो यह पढ़े गंगा चालीसा।

    मिली भक्ति अविरल वागीसा॥

    ।।दोहा।।

    नित नव सुख सम्पति लहैं।

    धरें गंगा का ध्यान।

    अंत समय सुरपुर बसै।

    सादर बैठी विमान॥

    संवत भुज नभ दिशि ।

    राम जन्म दिन चैत्र।

    पूरण चालीसा कियो।

    हरी भक्तन हित नैत्र॥

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