Matsya Avatar Ki Katha: भगवान विष्णु को क्यों लेना पड़ा था मत्स्य अवतार? बेहद खास थी वजह
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा बेहद शुभ और मंगलकारी मानी जाती है। ऐसे में आज हम उनके 10 अवतार में से एक मत्स्य स्वरूप (Lord Lord Vishnu Matsya Avatar) के बारे में जानेंगे जिनकी महिमा बहुत बड़ी है। कहते हैं कि विष्णु जी का यह स्वरूप भी जगत के कल्याण के लिए ही लिया गया है तो आइए इसके बारे में जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भगवान विष्णु ने जगत के कल्याण और कष्टों को दूर करने के लिए 10 अवतार लिए थे, जिनमें से एक मत्स्य अवतार भी है। उन्होंने यह रूप तब धारण किया था जब सृष्टि अपने अंत की ओर बढ़ रही थी। प्रलय आने में कुछ ही समय बाकी था, तब श्री हरि ने संसार के उद्धार के लिए यह अवतार लिया था। हालांकि उनके इस अवतार के पीछे बड़ी वजह थी, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने मत्स्य स्वरूप (Lord Lord Vishnu Matsya Avatar) धारण किया था, तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
इस कारण भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार (Matsya Avatar Ki Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है राजा सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान करने के लिए गए हुए थे। स्नान के बाद उन्होंने सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए हाथ में जल उठाया तो उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई, जिसे उन्होंने दोबारा से नदी में छोड़ दिया, लेकिन तभी मछली बोली कि 'हे राजन इस जल में बड़े-बड़े जीव रहते हैं, जो छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।' तब सत्यव्रत के हृदय में उस मछली के लिए दया भाव आ गया, जिस वजह से वह उसे अपने कमंडल में डालकर अपने साथ ले आएं।
अगली सुबह राजा की आंख खुली, तो उन्होंने देखा कि मछली का स्वरूप इतना बड़ा हो चुका था कि कमंडल भी छोटा पड़ने लगा था। तब मछली बोली कि 'राजा मेरे रहने के लिए कोई और स्थान हो तो कृपया ढूंढिए। मैं इसमें नहीं रह पा रही हूं।'
जब मछली को नदी भी छोटी पड़ गई
तब सत्यव्रत ने मछली को कमंडल से निकालकर एक पानी से भरे बड़े मटके में डाल दिया। कुछ समय के बाद ही फिर मछली के लिए जगह छोटी पड़ने लगी और राजा उसके लिए नए- नए स्थान की तलाश करने लगें। ऐसा करते-करते मछली का आकार इतना बड़ा हो गया कि उसे दोबारा से एक नदी में डालना पड़ा। हालांकि इसके बाद उस मछली वह नदी भी छोटी पड़ने लगी, जिस वजह से उसे मछली को दोबारा से समुद्र में डाल दिया गया।
जब पृथ्वी पूरी तरह से जल मग्न हो गई थी
देखते देखते उस मछली के लिए समुद्र छोटा पड़ गया। तब सत्यव्रत ने बड़े ही विनम्र स्वर में पूछा कि 'आप कौन हैं, जिन्होंने सागर को भी डुबो दिया है?' राजा के सवाल का जवाब देते हुए श्री हरि ने कहा कि 'मैं हयग्रीव नामक दैत्य के वध के लिए आया हूं, जिसने छल से वेदों को चुरा लिया है और इस कारण जगत में चारों ओर अज्ञानता और अधर्म फैल गया है।' उन्होंने आगे कहा कि 'आज से 7 दिन के बाद पृथ्वी पर प्रलय आएगा और वह समय बहुत ही भयानक होगा। पूरी पृथ्वी जल मग्न हो जाएगी।
जल के अतिरिक्त यहां कुछ भी नहीं बचेगा। तब आपके पास एक नाव पहुंचेगी और उस समय आप सभी प्रकार के जरूरी अनाज, औषधि, बीज एवं सप्त ऋषियों को साथ लेकर उस नाव पर सवार हो जाइएगा। मैं उसी समय आपसे दोबार मिलूंगा।'
ब्रह्मा जी को सौंप दिए गए सभी वेद
सात दिन बाद पृथ्वी जल मग्न होने लगी, तब सत्यव्रत ने भगवान विष्णु की कही गई सभी बातों को पूरा करते हुए नाव पर सवार हो गएं। सागर के भारी वेग से नाव अपने आप चलने लगी। इस दौरान राजा को विष्णु जी फिर मत्स्य रूप में नजर आएं,जिनके दर्शन से वहां मौजूद सभी धन्य हो गएं। इसके साथ ही भगवान ने हयग्रीव का वध कर सभी वेदों को फिर से ब्रह्मा जी को सौंप दिया और पूरे जगत को हयग्रीव के अत्याचार से बचा लिया।
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