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    Pandharpur Vitthal Mandir : देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर में भगवान विट्ठल की पूजा, प्रथम पूजा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही करते हैं

    By Ritesh SirajEdited By:
    Updated: Tue, 20 Jul 2021 08:58 AM (IST)

    Pandharpur Vitthal Mandir पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक दरवाजे पर प्रभु से मिलने आएं परंतु उस समय तक प्रभु मूर्ति रूप ले चुके थे। संत पुंडलिक ने उस विट्ठल रूप को ही अपने घर में पूजने के लिए विराजमान कर दिये।

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    देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर में भगवान विट्ठल की पूजा, प्रथम पूजा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही करते हैं

    Pandharpur Vitthal Mandir : महाराष्ट्र में आषाढ़ एकादशी के दिन पंढरपुर के विठोबा मंदिर में लाखों वारकरी भगवान विट्ठल की पूजा करने के लिए एकत्रित होते हैं। इस साल देवशयनी एकादशी 20 जुलाई 2021 को है। यह दिन वारकरी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पंढरपुर की यात्रा आषाढ़ शुक्ल एकादशी को होती है। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक जगह पर विठोबा मंदिर में भगवान विट्ठल वास करते हैं। पंढरपुर में होने की वजह इन्हें पंढरीनाथ के नाम से भी जाना जाता हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विट्ठल की प्रथम पूजा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ही करते हैं। आइये जानते है भगवान विट्ठल कौन हैं? और उनसे जुड़ी कथा 

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    कौन हैं भगवान विट्ठल

    महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक जगह पर भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान श्रीकृष्‍ण का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां के विठोबा मंदिर श्रीकृष्ण श्रीहरि विट्ठल रूप में विराजमान हैं। यहां पर उनके साथ लक्ष्मी अवतार माता रुक्मणिजी की भी पूजा की जाती है।

    भगवान विट्ठल की कथा

    6वीं सदी में संत पुंडलिक हुआ करते थे। इनके इष्ट देवता भगवान श्रीकृष्ण जी थे। संत पुंडलिक माता-पिता के परम भक्त थे। अपने भक्त की भक्ति से से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी के साथ पुंडलिक के द्वार पर प्रकट हुए। प्रभु ने उन्हें से पुकार कर कहा कि पुंडलिक हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करते हैं। उस वक्त पुंडलिक अपने पिता की सेवा कर रहे थे। इसलिए उन्होंने प्रभु को इंतजार करने को कहा और पुनः पैर दबाने में व्यस्त हो गए।

    भगवान ने भक्त की आज्ञा का पालन करते हुए कमर पर दोनों हाथ रखकर पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ईट पर खड़े होने की वजह से उन्हें विट्ठल कहा गया और उनका यह स्वरूप दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ। पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक दरवाजे पर प्रभु से मिलने आएं परंतु उस समय तक प्रभु मूर्ति रूप ले चुके थे। संत पुंडलिक ने उस विट्ठल रूप को ही अपने घर में पूजने के लिए विराजमान कर दिये। यही आगे चलकर पंढरपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। 

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।''