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    Panch Pyare: कौन थे खालसा पंथ के 'पंज प्यारे'? गुरु गोविंद सिंह जी ने स्वयं किया था चयन

    सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने ही सिख खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही उन्होंने ही पंच प्यारों को भी चयन किया जो सिख धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। यह न केवल पूजनीय माने गए हैं बल्कि बहादुरी और समर्पण का भी उत्कृष्ट उदाहरण हैं। तो चलिए जानते हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी ने पंच प्यारों का चयन किस प्रकार किया।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 11 Jun 2024 01:28 PM (IST)
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    Panch Pyare कौन थे खालसा पंथ के 'पंज प्यारे'?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सिख धर्म में पंच प्यारे पांच प्यारे एक विशेष और पूजनीय स्थान रखते हैं। आपने देखा होगा कि नगर कीर्तन में गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी के आगे इन 'पांच प्यारों' को स्थान दिया जाता है। लेकिन आप इन्हें नियुक्त किए जाने की कथा जानते हैं। अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं इस विषय में।

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    ऐसे नियुक्त किए थे पंच प्यारे

    सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा पंच प्यारों का चयन किया गया था। जिसमें भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहब सिंह शामिल थे। मुख्य रूप से पंच प्यारे धर्म की रक्षा के लिए नियुक्त किए गए। ये गुरु गोविंद सिंह जी के उन चुनिंदा शिष्यों में से एक थे, जो उनकी एक आवाज पर अपना शीश कटाने को तैयार हो गए। एक बार गुरु गोविंद सिंह ने वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन देश के कोने-कोने से सिखों को आनंदपुर साहिब बुलाया। तब उन्होंने वहां घोषणा करते हुए कहा कि मुझे धर्म और मानवता की रक्षा के लिए पांच शीश चाहिए। इस दौरान उन्होंने अपनी कृपाण लहराई और कहा कि कौन मुझे शीश देने के लिए तैयार है?

    शीश देने को तैयार हुए पांच वीर

    तब उस सभी में से एक सिख ने साहस किया और उठ कर बोला कि मैं अपना शीश दान करने के लिए तैयार हूं, वह थे भाई दया राम। इसी प्रकार एक-एक करके चार सिख और उठे तथा अपना शीश अर्पित करने को तैयार हो गए। तब गुरु गोविंद सिंह जी उन पांचों को अपने तंबू से लेकर गए और केसरी रंग के लिबास में नवयुवकों के साथ बाहर आए, जिनके सिर पर केसरी रंग की पगड़ी बंधी हुई थी। गुरु गोविंद सिंह जी ने भी ठीक वैसी ही वेशभूषा धारण की हुई थी। इसके बाद गुरु साहब ने लोहे के बर्तन में पानी लेकर उसमें बताशे मिलाए किया और अमृत के तौर पर इन पांचों को पिलाया। साथ ही उन्होंने इसी दिन खालसा पंथ की भी स्थापना की और खालसा पंथ के पांच वीर जो अलग-अलग जाति के थे उन्हें 'सिंह' की उपाधि देकर सिख बनाया। ये 'पंज प्यारे' कहलाएंगे।

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    आज भी बना हुआ है महत्व

    पंच प्यारों ने धर्म की रक्षा के लिए खुद को गुरु गोबिंद सिंह जी को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया था। इसलिए पंज प्यारे को सिख समुदाय का नेतृत्व करने और उसे प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। साथ ही यह पंच प्यारे निस्वार्थता, बहादुरी और सिख सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति समर्पण का भी बेहतरीन उदाहरण माने जाते हैं। यही कारण है कि सिख धर्म में इन्हें विशेष महत्व दिया जाता है। 

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।