Panch Kanya: शास्त्रों में मिलता है पंचकन्या का वर्णन, जिनका नाम लेने मात्र से कट जाते हैं सभी पाप
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पंचकन्या का स्मरण करने और उन्हें प्रणाम करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। इसी के साथ विवाहित महिलाएं द्वारा रोजाना इन पंचकन्या को प्रणाम करना भी काफी शुभ माना जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर यह पंचकन्याएं कौन हैं और हिंदू धर्म में इनका इतना महत्व क्यों माना गया है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में पंचकन्या को विशेष महत्व दिया गया है, जिनका वर्णन धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है। ब्रह्म पुराण में वर्णित एक श्लोक में पंचकन्या का वर्णन किया गया है जिसमें अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा, मंदोदरी का नाम शामिल हैं। चलिए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं -
अहल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मंदोदरी तथा।
पंचकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातकनाशम्॥
जानिए पंचकन्या के बारे में
माता अहिल्या - माता अहिल्या का वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है, जो एक बहुत ही सुंदर, सुशील और पतिव्रता नारी थीं। वह ब्रह्मा जी की मानसपुत्री थीं, जिनका विवाह गौतम ऋषि से हुआ था। एक बार जब गौतम ऋषि आश्रम से बाहर गए हुए, तो देवराज इंद्र के छल से अहिल्या के साथ प्रणय करने की कोशिश की। इस दौरान गौतम ऋषि वहां आ गए और उन्होंने अहिल्या को पत्थर की मूर्ति बनने का श्राप दे दिया। इसक बाद त्रेता युग में भगवान राम के दर्शन के बाद अहिल्या का उद्धार हुआ।
द्रौपदी - महाभारत ग्रंथ में द्रौपदी का वर्णन मिलता है, जो पंचकन्या में शामिल है। द्रौपदी 5 पाडंवों, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नुकल और सहदेव की पत्नी थी। कथा के अनुसार द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था, इसलिए उसे याज्ञनी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में निहित कथा के अनुसार, द्रौपदी ने पूर्व जन्म में भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी, और पांच बार सर्वगुणसंपन्न पति की कामना की। भगवान शिव के वरदान के कारण ही द्वापर युग में द्रौपदी का विवाह पांडवों से हुआ। महाभारत काल के द्रौपदी चीर हरण प्रकरण में जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी लाज बचाई थी।
माता तारा - माता तारा शक्तिशाली वानरराज बाली की पत्नी थीं, जो समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुई थीं। इस दौरान बाली और सुषेण दोनों ही उससे विवाह करना चाहते थे, लेकिन उस समय यह निर्णय हुआ कि जो भी तारा के वामांग में खड़ा है उसी का विवाह तारा से होगा। इस प्रकार तारा का विवाह बाली से हुआ। मां सीता की खोज के दौरान वानरराज बाली भगवान श्रीराम के हाथों मारा गया। तब तारा ने उन्हें यह श्राप दिया कि अगले जन्म में उनका वध बाली के हाथों ही होगा। परिणामस्वरूप द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का वध शिकारी के हाथों हुआ, जो वानरराज बाली का ही दूसरा जन्म था।
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माता कुंती - कुंती भी महाभारत काल के महत्वपूर्ण किरदारों में से एक रही है। यदुवंशी राजा शूरसेन ने अपनी पृथा नाम की पुत्री को कुंतीभोज को गोद दे दिया था। कुंतीभोज ने उस कन्या का नाम कुंती रखा। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एक बार माता कुंती ने ऋषि दुर्वासा की बहुत सेवा की, जिससे वह प्रसन्न हुए और उसे इच्छा संतान प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के फलस्वरूप कालांतर में कुंती को 5 पुत्र प्राप्त हुए, जो अलग-अलग देवताओं की संतान थे। इसके अलावा सूर्य पुत्र कर्ण भी कुंती की ही संतान था।
मंदोदरी - मंदोदरी को हम सभी रावण की धर्मपत्नी के रूप में जानते हैं। शिव भक्ति होने के साथ-साथ मंदोदरी एक पतिव्रता नारी भी थी। वह स्वर्ग की अप्सरा हेमा की पुत्री थीं, जो पंचकन्या में शामिल होने के साथ-साथ चिर कुमारी भी थी। भगवान शिव के वरदान के कारण उसका विवाह रावण से हुआ था। जब रावण द्वारा माता सीता का हरण किया गया, तो मंदोदरी ने कई बार दशानन रावण समझाने का प्रयास किया, लेकिन उनसे एक बात नहीं मानी, जिस कारण अंत में उसे भगवान श्रीराम के हाथों सद्गति प्राप्त हुई।
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