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    Rohini Vrat 2025: कब है रोहिणी व्रत? यहां नोट करें शुभ मुहूर्त और योग

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 05:21 PM (IST)

    वैदिक पंचांग के अनुसार, 07 नवंबर को रोहिणी व्रत है, जो भगवान वासुपूज्य को समर्पित है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा और व्रत रखने से सुख, सौभाग्य और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। स्त्री और पुरुष दोनों यह व्रत रख सकते हैं। इस बार परिघ और शिव योग का शुभ संयोग बन रहा है, जिससे व्रत का फल और भी अधिक मिलेगा।  

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    Rohini Vrat 2025: भगवान वासुपूज्य को कैसे करें प्रसन्न?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 07 नवंबर को रोहिणी व्रत है। यह दिन भगवान वासुपूज्य को समर्पित होता है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह दिन बेहद खास होता है। इस शुभ अवसर पर भगवान वासुपूज्य की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। इसके साथ ही भगवान वासुपूज्य के निमित्त व्रत रखा जाता है।

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     Rohini Vrat 2025 Puja vidhi

    इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही मनचाहा वरदान मिलता है। दोनों स्त्री और पुरुष दोनों वर्ग के साधक व्रत रख सकते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में भगवान वासुपूज्य की विशेष पूजा की जाती है। आइए, रोहिणी व्रत के बारे में सबकुछ जानते हैं-

    रोहिणी व्रत शुभ मुहूर्त (Rohini Vrat 2025 Shubh Muhurat)



    मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया और तृतीया तिथि यानी शुक्रवार 07 नवंबर को रोहिणी व्रत है। रोहिणी नक्षत्र का संयोग 08 नवंबर देर रात 12 बजकर 33 मिनट तक है। व्रती (साधक) अपनी सुविधा अनुसार समय पर परम पूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा कर सकते हैं।


    रोहिणी व्रत शुभ योग (Rohini Vrat Shubh Yoga)

    अगहन माह के रोहिणी व्रत पर परिघ और शिव योग का संयोग बन रहा है। परिघ योग का समापन देर रात 10 बजकर 28 मिनट तक है। इसके बाद शिव योग का निर्माण हो रहा है। परिघ और शिव योग में भगवान वासु स्वामी की पूजा करने से व्रती की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी।


    वासुपूज्य भगवान की आरती

    ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।

    पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।

    चंपापुर नगरी भी स्वामी, धन्य हुई तुमसे।

    जयरामा वसुपूज्य तुम्हारे स्वामी, मात पिता हरषे ।।

    बालब्रह्मचारी बन स्वामी, महाव्रत को धारा।

    प्रथम बालयति जग ने स्वामी, तुमको स्वीकारा ।।

    गर्भ जन्म तप एवं स्वामी, केवलज्ञान लिया।

    चम्पापुर में तुमने स्वामी, पद निर्वाण लिया ।।

    वासवगण से पूजित स्वामी, वासुपूज्य जिनवर।

    बारहवें तीर्थंकर स्वामी, है तुम नाम अमर ।।

    जो कोई तुमको सुमिरे प्रभु जी, सुख सम्पति पावे।

    पूजन वंदन करके स्वामी, वंदित हो जावे ।।

    ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी।

    पंचकल्याणक अधिपति स्वामी, तुम अन्तर्यामी ।।

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।