Nautapa 2025: नौतपा के दौरान सूर्य देव को इस विधि से दें अर्ध्य, नहीं पड़ेगा जीवन पर इसका बुरा असर
नौतपा ज्येष्ठ महीने में आता है जो इस साल 25 मई से शुरू होकर 8 जून को समाप्त होगा। इस दौरान सूर्य की किरणें सीधी पड़ने से तापमान बढ़ता है। नौतपा (Nautapa 2025) में सूर्य देव को अर्घ्य देना महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और तेज यश और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नौतपा का समय बेहद कठिन माना जाता है। यह हर साल ज्येष्ठ मास में आता है। ज्योतिष शास्त्र में नौतपा का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान धरती पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, जिससे तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। हिंदू पंचांग को देखते हुए इस साल नौतपा (Nautapa 2025) 25 मई को शुरू होगा और इसका समापन 8 जून को होगा।
कहते हैं कि इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही इसके बुरे प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
सूर्य देव को अर्ध्य देने का महत्व ( Surya Arghya Significance)
नौतपा के दौरान सूर्य देव को अर्ध्य देना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस अवधि में नियमित रूप से भगवान सूर्य को अर्ध्य देने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को अपार तेज, यश, और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही नौतपा के बुरे प्रभाव को भी कम करते हैं।
अर्ध्य देने की आसान विधि (An Easy Method Of Giving Arghya)
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- लाल रंग के कपड़े पहनें।
- एक तांबे के लोटे में साफ जल लें।
- जल में थोड़ी सी रोली, अक्षत और लाल गुड़हल के फूल डालें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके दोनों हाथों से लोटे को पकड़कर धीरे-धीरे जल की धारा सूर्य देव की ओर अर्पित करें।
- यह ध्यान रहे कि जल जमीन पर न गिरे, यह किसी पात्र या पौधे में ही जाए।
- फिर सूर्य नमस्कार करें और उनके वैदिक मंत्रों का जप करें।
- अंत में आरती करें।
- पूजा के दौरान चप्पल व चमड़े की चीजों से परहेज करें।
- पूजा के दौरान पवित्रता का खास ख्याल रखें।
नौतपा के दौरान सूर्य देव के इन मंत्रो का करें जप (Chant These Mantras Of Lord Surya)
- सहस्त्ररश्मि: शतधा वर्तमान: पुर: प्रजानामुदत्येष सूर्य:।
- विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतीरूपं तपन्तम्।
- ऊँ नमो भगवते श्रीसूर्यायादित्याक्षितेजसे हो वाहिनि वाहिनि स्वाहेति।
- गायत्री मंत्र:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
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